Tuesday, 8 August 2023

kadam kadam jindgi

 कदम कदम जिंदगी

 जाने कब मैं बड़ी हो गई एहसास भी नहीं हुआ एक एक कदम बढ़ते जिंदगी के चंद कदम रह गये लेकिन मन है कि अभी जरा भी बड़ा हुआ। मस्तिष्क अवष्य बच्चा बने रहने से मना कर देता है बच्चों जैसी हरकत न हो जाये यह ध्यान रखना पड़ता है लेकिन दिल है कि बचपन से आगे बढ़ता ही नहीं वहीं अटक जाता है। नदी में फूल बहा दो किसी कोने पर अटक गया तो वह वहीं अटक जायेगा साथ ही धीरे धीरे और भी बहती चीजों केा अटका देता है । बचपन एक एक कदम पीछे छूट गया पता ही नहीं चला रा बड़ी जब हुई जब घेरदार फ्राक की लंबाई घुटनों तक आ गई फिर कुछ कदम तब बड़े हुए जब बारिष में नहाने से मां ने मना कर दिया और चंद दिन बीतते न बीतते मुझे मां ने सलवार सूट पहनाना प्ररम्भ कर दिया और अकेले स्कूल जाने से प्रतिबन्ध लग गया । खेल खिलौने बदल गये, फिर कदम और बढ़े जब रास्ते में कभी कभी नजरें चुभती सी लगने लगीं और अनायास ही हाथ दुप्पट्टा ठीक करने लगता बचपन का एहसास कुछ कुछ रुका सा हो गया। कहानियों में राजकुमार आने लगा और पढ़ते में कान की लौ लाल हो उठतीं ।

ससुराल में कदम रखते ही जिंदगी कितनी बदल गई लगता था कि वह बहुत बड़ी होगई। हर कदम अलग अलग एहसास होने लगे जिनमें बचपन कही भूला सा हो गया फिर मां दादी बनने की लंबी यात्रा,नये नये रास्ते बनते गये जिंदगी आखिरी मोड़ पर आ गई पर दिल है कि बच्चा हो गया है मानता ही नहीं हर समय उन्हीं पृष्ठों को टटोलता है बीच के पृष्ठ तो कभी कभी अटक जाते पर खुले पन्ने तो वे बचपन के रहते हैं ।



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