Friday 13 October 2023

nani ghar

 नानीघर

निकल निकलकर जब आती है

बचपन    तेरी    बीती  बातें   

रात रुपहली भोर    सुनहरी

प्यार से भीगी थीं बरसातें ।

राजा थे हम नानी घर के

गेादी नाना की सिंहासन,

हम थे कृष्ण कन्हैया घर के

नानी का घर था वृन्दावन।

जिद करते यदि हम चंदा की

तारे तो आ ही जाते थे

थम्मक थम्मक हाथी चलता

घुटने चल नाना बहलाते।

रात चाॅंदनी में गद्दों पर

नानी कहती नई कहानी

बौना लेकर आता गाड़ी

बैठ कर आते राजा रानी।

सुनते सुनते हम सो जाते 

नानी भी सो जाती थी 

जब हम घर को वापस आते 

गले लगा रो जाती थीं ।



Tuesday 10 October 2023

chuhiya bitte bhar ki

 


चुहिया बित्ते भर की


चॅूं चॅूं चॅंू चॅंू चॅंू चॅूं चॅूं चॅूं  

घर में मुनिया को पड़ी सुनाई

मम्मी देखो मम्मी देखो 

अपने घर में चिड़िया आई

पंखा देखा खिड़की देखी

देखा आलमारी पर चढ़कर

तस्वीरों के पीछे देखा

सोफे पर से उझक उझक कर

दिखी न चिड़िया कहीं कोई भी

फिर कैसे आवाज है आई

भ्रम तो नहीं हुआ है मुझको

चॅूंच्ॅूंाॅू की आवाज थी आई ,

आॅंखें दो दो चमक रही थीं

अलमारी के पीछे से 

ताक रही थी कैसे खींचंू

रोटी लटके  सींचे से 

नकल उतारी मुनिया ने 

झंुककर बोली चॅूं च्ॅूंा च्ॅूंा ं

चुहिया उछली डरकर भागीे

और होगई मन्तर छू

मुनिया चीखी बड़ी जोर से

भागी आई घबराई

गेादी लो माॅं गोदी लो

देखो देखो चुहिया आई

हॅंस हॅंस कर सब हुए दोहरे

बित्ते भर की है चुहिया

डरकर चिपक रही मम्मी से

डेढ़ हाथ की देखो मुनिया ।


Monday 9 October 2023

meri bahan

 


मेरी बहना



अम्मा देखो छोटी बहना

मुझे बुलाती भ्ीैया भैया

ठुमुक ठुमुक कर छम छम करती 

नाचा करती ताता थैया

परदे के पीछे छिप जाती

ता ता करके मुझे रिझाती

मन करता है खेले संग में 

इसीलिये वो मुझे चिढ़ाती

पढ़ता हॅूं तो मेरे पीछे

चुपके चुपके आ जाती

रबर पेंसिल कापी पुस्तक

लेकर उन्हें छिपाती

कभी पकड़ कर मेरी उंगली

मुझसे कहती चलो बजार 

खट्टी मीठी गोली लॅूंगी 

गुब्बारे मैं लॅूंगी चार 

गिनती गिनना नहीं जानती

तब भी गिनती मुझे बताती

दोनों हाथ दिखा कर कहती

चिज्जी लॅंूगी कई हजार




Sunday 8 October 2023

makadi karti kamal hai

 मकड़ी करती कमाल है


छोटी सी मकड़ी ने 

कैसा कमाल दिखाया

झूल झूल कर आगे आगे

खुद ही धागा बनाया

कभी इधर  और कभी उधर

धागे से लटकी जाये

धागे से बंुन बुनकर चादर

रहने को जाल बनाये 

फिर नन्हे अपने बच्चों को 

धीरे से बिठलाये

छोटे छोटे कीड़े लाकर

जाले में उन्हें फंसाये

कभी उतरकर कोने कोने

कीड़े वह ले जाती

 अपने नन्हे बच्चों को 

 कीड़े खाना सिखलाती,।


Saturday 7 October 2023

dharti ki pooja

 ☺धरती की पूजा



सुबह सुबह मैं नदी किनारे

खेतों में था गया टहलने

खेत किनारे सूरज भैया

अपने घर से लगे निकलने

बहुत दूर मेड़ों के पीछे

तुमको चुपके आते पाया

खूब सुनहरा रंग तुम्हारा

खेतों में सोना बरसाया

सुबह सुबह मेरी दादी जी

नदी किनारे पूजा करती

नदिया के पीछे से भी मैं

तुमको आते देखा करती

सिंदूरी रंग में रंगकर क्या

धरती का अर्चन करते हो।

लगता है दोनों हाथों से

तुम भी पूजा करते हो।



Friday 6 October 2023

Aao hum baccha ho jayen

 ष् आओ हम बच्चा हो जायेंष्


कोराना की वजह से छुट्टियाँ हो गई मां बाप की आफत आगयी  गर्मियों की छुट्टियाँ तो  दो महिने की होती हैं  होते ही झगड़ा टंटा शुरू हो जाता है।यह तो पता ही नहीं कब स्कूल खुलेंगे। सब कुछ गड़बड़ सब कुछ झाला। न सोने का ठीक न जागने का। स्कूल बंद होने वाले है सोचकर ही मांओ को झरझुरी आ जाती है । सारा दिन ऊधम न तकिये का पता होगा न चादर का घर तो लगेगा ही नहीं कि साफ हुआ है । जिंदगी मंे चलते चलते जैसे तूफान आ जाये। सबसे पहला नियम सुबह उठने का टूटेगा। पाँच बजे बच्चों को तैयार कर बच्चों केा स्कूल भेजने के बाद चाय की चुस्कियों के बीच अखबार या एक झपकी नींद एऔर दस बजे तक काम खत्म कुछ शापिंग वापिंग लंच ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् टीवी सीरियल कुछ काम। दोपहर तक जिंदगी सैट हो जाती है बच्चे आये खाना हुआ बच्चो के पंसदीदा चैनल चले मतलब एक रुटीन लाइफ सब कुछ फायदे में एक नियम के चलते। कामकाजी महिला तो उनका भी अपना रुटीनण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् लेकिन छुट्टियाँ बाप रे बाप ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् एक तूफान ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् एक झंझावात जो सुबह से सब कुछ बिगाड़ देता है । नौ बजे तक बच्चे हिलने का नाम नहीं लेतेण्ण्ण्ण्ण्


Friday 22 September 2023

chunav

 

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Sunday 27 August 2023

ye bekar log

 हिंदू अपने को उच्चस्थ सिंहासन पर बैठे देखना चाहता है। चाहना कोई बुरी बात नहीं है,मन में इच्छा होगी तभी तो हम आगे बढ़ेंगे लेकिन एक इच्छा जो बलवती है सारकारी नौकरी की ,कुर्सी की नौकरी का कारण है सरकार द्वारा दी जाने वाली अत्यधिक सुविधायें और कुछ ऐसे नियम जो अकर्मण्यता की ओर ले जाते हैं तभी तो सरकारी नौकरी के लिये जब कई कई लाख रिष्वत देने के लिये तैयार रहता है तो हैरानी होती है उतने रुपये में कोई अच्छा कारोबार कर सकते हैं परंतु मेहनत करनी पड़ेगीएक बार सरकारी नौकरी मिल जाये लाखों रुपये तो रिष्वत में ही कमा लिया जायेगा आम जनता का काम कोई ऐसे ही फोकट में कर दिया जायेगा ।

Tuesday 8 August 2023

kadam kadam jindgi

 कदम कदम जिंदगी

 जाने कब मैं बड़ी हो गई एहसास भी नहीं हुआ एक एक कदम बढ़ते जिंदगी के चंद कदम रह गये लेकिन मन है कि अभी जरा भी बड़ा हुआ। मस्तिष्क अवष्य बच्चा बने रहने से मना कर देता है बच्चों जैसी हरकत न हो जाये यह ध्यान रखना पड़ता है लेकिन दिल है कि बचपन से आगे बढ़ता ही नहीं वहीं अटक जाता है। नदी में फूल बहा दो किसी कोने पर अटक गया तो वह वहीं अटक जायेगा साथ ही धीरे धीरे और भी बहती चीजों केा अटका देता है । बचपन एक एक कदम पीछे छूट गया पता ही नहीं चला रा बड़ी जब हुई जब घेरदार फ्राक की लंबाई घुटनों तक आ गई फिर कुछ कदम तब बड़े हुए जब बारिष में नहाने से मां ने मना कर दिया और चंद दिन बीतते न बीतते मुझे मां ने सलवार सूट पहनाना प्ररम्भ कर दिया और अकेले स्कूल जाने से प्रतिबन्ध लग गया । खेल खिलौने बदल गये, फिर कदम और बढ़े जब रास्ते में कभी कभी नजरें चुभती सी लगने लगीं और अनायास ही हाथ दुप्पट्टा ठीक करने लगता बचपन का एहसास कुछ कुछ रुका सा हो गया। कहानियों में राजकुमार आने लगा और पढ़ते में कान की लौ लाल हो उठतीं ।

ससुराल में कदम रखते ही जिंदगी कितनी बदल गई लगता था कि वह बहुत बड़ी होगई। हर कदम अलग अलग एहसास होने लगे जिनमें बचपन कही भूला सा हो गया फिर मां दादी बनने की लंबी यात्रा,नये नये रास्ते बनते गये जिंदगी आखिरी मोड़ पर आ गई पर दिल है कि बच्चा हो गया है मानता ही नहीं हर समय उन्हीं पृष्ठों को टटोलता है बीच के पृष्ठ तो कभी कभी अटक जाते पर खुले पन्ने तो वे बचपन के रहते हैं ।



Sunday 6 August 2023

bachpan

 कदम कदम जिंदगी

 जाने कब मैं बड़ी हो गई एहसास भी नहीं हुआ एक एक कदम बढ़ते जिंदगी के चंद कदम रह गये लेकिन मन है कि अभी जरा भी बड़ा हुआ। मस्तिष्क अवष्य बच्चा बने रहने से मना कर देता है बच्चों जैसी हरकत न हो जाये यह ध्यान रखना पड़ता है लेकिन दिल है कि बचपन से आगे बढ़ता ही नहीं वहीं अटक जाता है। नदी में फूल बहा दो किसी कोने पर अटक गया तो वह वहीं अटक जायेगा साथ ही धीरे धीरे और भी बहती चीजों केा अटका देता है । बचपन एक एक कदम पीछे छूट गया पता ही नहीं चला रा बड़ी जब हुई जब घेरदार फ्राक की लंबाई घुटनों तक आ गई फिर कुछ कदम तब बड़े हुए जब बारिष में नहाने से मां ने मना कर दिया और चंद दिन बीतते न बीतते मुझे मां ने सलवार सूट पहनाना प्ररम्भ कर दिया और अकेले स्कूल जाने से प्रतिबन्ध लग गया । खेल खिलौने बदल गयेए फिर कदम और बढ़े जब रास्ते में कभी कभी नजरें चुभती सी लगने लगीं और अनायास ही हाथ दुप्पट्टा ठीक करने लगता बचपन का एहसास कुछ कुछ रुका सा हो गया। कहानियों में राजकुमार आने लगा और पढ़ते में कान की लौ लाल हो उठतीं ।

ससुराल में कदम रखते ही जिंदगी कितनी बदल गई लगता था कि वह बहुत बड़ी होगई। हर कदम अलग अलग एहसास होने लगे जिनमें बचपन कही भूला सा हो गया फिर मां दादी बनने की लंबी यात्राएनये नये रास्ते बनते गये जिंदगी आखिरी मोड़ पर आ गई पर दिल है कि बच्चा हो गया है मानता ही नहीं हर समय उन्हीं पृष्ठों को टटोलता है बीच के पृष्ठ तो कभी कभी अटक जाते पर खुले पन्ने तो वे बचपन के रहते हैं ।



ye kya ho gaya mere desh ko

 ऽ अगस्त क्रांति मथुरा से पकड़नी थी, जरा सा आगे बढ़ते ही जाम की स्थिति उतर कर देखा दूर दूर तक वाहनों की लम्बी कतार ड्राईवर ने तुरंत मोड़ कर सर्विस लेन पर गाड़ी उतार ली जैसे जैसे गाड़ी बढ़ती राहत की सांस आती जा रही थी नहीं तो निश्चित था टेªन निकल जायगी आगे एक ट्रक पलट गया था।

ड्राईवर और क्लीनर घायल थे उन्हें पटरी पर लेटा दिया गया था ट्रक हटा कर रास्ता चालू करने का प्रयंत्र किया जा रहा था एक मिनट रूक कर स्थिति देखी अरे धायल इन्हें पहले कोई हाॅस्पिटल क्यों नहीं पहुचा रहा चलो आके हाॅस्पिटल है इन्हें छोड़ देते हैं कर्तव्य का भाव जाग उठा। पागल हो अभी अगर टेªन नहीं पकड़नी है तो पड़ो चक्कर में पहले तो पुलिस मैं मामला दर्ज होगा तुम लेकर गयी तो तुम्हारा बंया होगा तुम्हें पुलिस इतनी आसानी से जाने नहीं देगी हो सकता है तुमने ही मारा हो पता लगा।

एम्बुलेंस के लिए फोन कर दिया है पर वह भी जाम खुलेगा तब ही तो आयेगी और अस्पताल वाले भी भरती नहीं करेंगे आसानी से में और शायद सभी जल्दी में थे लाख लाख शुक्र है गाड़ी मिल गई रास्ते मे ंएक स्थान पर फालसे लिये पता नहीं कौन जमाने का ठेले वाला था जो कागज में फालसे दे रहा था प्लास्टिक थैले नहीं थे उस अखबार मे ंएक पुरानी खबर और चित्र था एक टेªन दुर्घटना का एक महिला सीट से दबी थी और एक आदमी उसकी चूड़ी उतार रहा था खबर मैं था चूड़ी उतार कर वह भाग गया।

महिला को नहीं निकाला बस कांड तो होकर ही चुका है आधी दुनिया चीख कर रह गई कुछ नहीं हुआ रोज खबरें रहती है बैखोफ हैं यौन अपराधी यह सब भारतीय संस्कृति का हिस्सा है जिसका गौरबमय अतीत है एक भव्य आयोजन से वापस आते ही खबर मिली अमेरिका में बेटी दामाद व धेवती क कार दुर्घटना ग्रस्त हो गई कार ने पांच छः पलते खाए बेटी बेहोश दामाद ने गाड़ी से निकल कर देखा एक गाड़ी सहायता के लिए रुक गई उन्होंने उससे प्रार्थना की एम्बुलैंस से ही हिदायत दे रहे थे उन्हें क्या उपचार करता है दो मिनट मैं एम्बुलैस वहां थी पांच मिनट में पुलिस पहुंच गई एम्बुलैंस उन्हें लेकर हाॅस्पिटल चली और पुलिस ने उनका एक एक सामान बठोर कर यहां तक की चिल्लर भी उन तक सुरक्षित पहंुच दिया ईश्वर का बहुत धन्यवाद जो इसी भीषण दुर्घटना से सब उबर गये। किस सभ्यता संस्कृति केा हम मानवीय कहेंगे हां धन्यवाद के समय भारतीय ईश्वर ही मरे सामने थे ।




Tuesday 23 May 2023

bachpan ki sanskrtik yatra

 बचपन की सांस्कृतिक यात्रा


कम्प्यूटर पर रेस बाइक पर मोटर पर  और भी न जाने कितने गेम खेल नही कहूॅगी क्योकि खेल के नाम पर हम हिन्दुस्तानी हो जाते हैं और आज कल बच्चों की दुनिया भारत को इंडिया के रूप मे जी रही है। पहले कम्प्यूटर पर फिर वास्तविक जगत मे द्रतुगति से वाहन भीड़ भरी सड़कों पर दौड़ाना उनका शौक है शान है जीवन है क्योकि बचपन ही उन्होंने कम्प्यूटर पर प्ले स्टेषन पर गेम खेल कर ही बिताया है। बचपन क्या होता है वे नही जानते हैं। परिवार है ही नहीं तो दादी नानी की कहानी कहाॅं से सुनें। वे आया से चुपचाप सोने की कह या बैठे रहने की डांट सुन अकेले कमरे में स्टफ्ड खिलौनों को संगी साथी बनाकर तेजी से बडे होते हैं।

तेजी से बडा होने से तात्पर्य है आजकल बच्चा अपने समय से कहीं ज्यादा मैच्येार है छोटे से दो साल के बच्चे के हाथ में मोबाइल का खिलौना होता है और पींठ पर ढेर सारी किताबें जो किताबी ज्ञान देती हंै। यथार्थ की दुनिया से बहुत दूर कहीं दूर कल्पना की दुनिया उनको घेरे रहती है और कल्पना की दुनिया भी स्नेहिल कोमल परियों के पंखो के साथ तारा मंडल में घूमना तितली पकड़ना या फूलों से बात करते हुए बौनों की दुनिया में जाकर जादुई घोडे़ पर सबार होकर सात समुंदर पार जाना नही है। है हिंसक एलियंन्स के अजीब गरीब चेहरे और केवल मार धाड, दो ग्रहो के बीच युद्व या तरह तरह के जीवांे का हमला सिर्फ हिंसा और ंिहंसा। अकेलेपन और हिंसा कंे दृष्यो के बीच पलता बढ़ता बचपन कितना अलग है हमारे अपने बचपन से।

हमें दो पंडित जी पढाने आते थे एक पंडित जी सुबह आते थे एक पंडित जी शाम को। सुबह बाले पंडित जी का नाम था पंडित प्यारे लाल भरे पूरे ष्षरीर और तोंद वाले पंडित जी धोती कुर्ता पहनते थे गरमी के दिनों में कुर्ते की जगह बिना बांह की कुर्ती सी पहनते गेहु्रआ रंग। पढने के कमरे में पंडित जी के आने के समय चटाई बिछ जाती। हम चार बच्चे पढते दो भाई मै और अब छोटा भाई ,बडी बहन कुछ ही  दिन पढी फिर शयद उनकी क्लास ऐसी हो गई थी जिसे वे नही पढा सकते थे। सुबह वाले पडित जी को कहा ही मोटे पंडित जी जाता था वे हमे हिंदी पढाते थे जैसे जैसे हम भाई बहन एक एक कर स्कूल जाने लगे पढ़ने बाले कम होते गये शाम को पंडित जी आते वे पतले दुबले थे। धोती कुर्ता तो वो भी पहनते मोटे पंडित जी गावतकिये को खिडकी के दरवाज पर लगा लेते थे खिडकी से ठंडी हवा आती और शीघ्र ही हमे लिखने के लिये दे वे झोंके लेने लगते और एक एक कर हम सब फुर्र धीरे धीरे पंडित जी को देखते हुए सरकते जाते। माॅ सामने दूसरे कमरे में से देखती रहती वो आवाज लगाती ,‘‘पंडित जी’ ’और पेडितजी चैककर सीधे हो जाते और हमसब भी भोले भोले चेहरे बनाकर आ बैठतै पंडित जी मारते नही थे पर डंडी फटकरते ,‘कहां गये थे’ किसी को प्यास लगी होती थी कोई एक ऊॅगली उठाता कोई दो उंगली और फिर अपनी अपनी तख्तियों पर झुक जाते।

सब मंे आपस मे होड लगी रहती किसकी तख्ती ज्यादा साफ चमकदार है पेन्ट से सफेद लाइन बनायी जाती ,बडी सुंदर सी सीेपी से उसे घिसते थे तख्ती एकदम चिकनी हो जाती जब ज्यादा बदरंग हो जाती तब कोलतार से उसे फिर पेन्ट कराया जाता तब तक सलेट भी आ गई थी उस पर भी लिखना सिखाया गया। जैसे कि बच्चों मे धुन होती है सलेट साफ रहे इसलिये हर कपडे का प्रयोग किया जाता खास तौर माॅ के रूमाल । हम चुपके से लेकर भिगोकर सलेट पौछते तब माॅ बाजार का खरीदा रूमाल नही उपयोग मे लाती थी। मलमल के टुकडे पर कोने में कढाई करती थी कभी जाली लगा कर क्रासस्टिच से फूल बनाती या छोटी सी फुलकारी। चारो और किनारे पर रंग बिरंगे धागे से कढाई करती कितने ही प्रकार की डिजाइन बनाती। हम बच्चो को सबसे सुविधा जनक वही कपडा लगता। माॅ देखती कहती और ,‘मिटो यह क्या किया मुझसे मांग लेते कपड़ा ’ अपनी मेहनत की दुर्दषा पर खीझती पर हमारे लिये वह महज कपड़ा था बेकार कपडा जिससे पसीना पौछा जा सकता है तो सलेट भी पौछी जा सकती है।

आज अपनी कई इसी प्रकार की नादानियों पर हंसी भी आती है क्र्रोध भी। माॅ  सफेद हरे लाल  रंग बिरंगे मोतियों से जिन्हें पोत कहती थीं बहुत सुन्दर सामान बनाती थी  चैपड़, पैन का कवर, पसर्, दवात का कवर, रूमाल का केस आदि बनाती थी। मोती इकटठा करने के चक्कर में हम उन्हे तोड़ तोड़ कर अपनी डिब्बी भी भर लेते थे।नानी का लाड़ हम पर अधिक था। नानी अपना खाना अपने आप बनाती थी उनका कमरा मामा घर की दूसरी मंजिल पर ही था । हम लोग कभी मामा के घर आ जाते कभी मामा जी के यहां से बच्चे हमारे घर आ जाते अधिकतर हम ही जाते। नानी देखती चुपके से इषारे से अपने पास बुला लेती और अंदर तिवारी में ले जाकर लडडू खिलाती ,‘लाली चुपचाप खा ले’ अभी विष्नुु  ओमी आ जायेंगे तो खा जायेंगे । विष्णु ओमी स्वयं उनके पोते ही थे लेकिन हम पर नानी का प्यार ऐसे ही उमडता था। चुपचाप हथेली मंे एक आना दो पैसे थमा देती। सुबह मंदिर आती तो कभी कभी घर पर आती कभी ऊपर नही आती पिछले दरवाजे पर कुंडी खटखटा खड़ी रहती। नानी की जो छवि आज भी आंखांे मे घूमती है दादी नानी के नाम पर वही बनती है नानी का चेहरा निरीह सा दुबली ढीला ढीला ब्लाउज सफेद सीधे पल्ले की सूती धोती। सफेद ही चादर मेरी माॅं का नानाजी की मृत्यु के महिने भर बाद जन्म हुआ था। उन दिनों मथुरा षहर में महिलाऐं चादर ओढ़ती थीं । चादर ढाई गज का सिल्क मलमल आदि का कपड़ा होता था ये टिष्यू के जरीदार कढ़ाई  वाले भी होते हैं जिसे  दुप्पट्टे की तरह लपेटती थीं आज भी चैबन दुप्पट्टा ओढ़कर ही निकलती हैं। नानी कभी डिब्बे मे लडडू कभी बरफी कभी हलुआ ले आती। बसंत पंचमी पर नानी का इंतजार रहता वो हमारे लिये बेर गुडडे गुडियों का सैट लाती । नानी घर के दरवाजो पर मोती सीपी की रंग बिरंगी झालर लगी रहती थी हम लडियां तोड लेते और मामी की तीखी आवाज से भाग लेते। आज अपने पोते पोतियों के सामान बिगाडने पर क्रोध आता है तो साथ ही अपनी हरकतंे भी ध्यान आ जाती है आज कोई चीज हम नही सजा पाते तब भी सजावट को केैसे बिगाड देते थे। उन मोती सीपियों से फिर तरह तरह की मालाएं लटकन बनाते गुडडे गुडियों के जेवर बनाते।


Friday 19 May 2023

dakoo aur nai

 ंडाकू और नाई

दादा के समय की कहानी है। चार बड़े डाकू जेल से भागकर साधु का वेश बनाकर गाँव गाँव घूमने लगे। एक दिन घूमते घूमते वे एक गाँव के बाहर वीरान पड़े मंदिर में पहुँचे। मंदिर अच्छा खासा रहने लायक था उन लोगों ने वही अड्डा जमा लिया। वे इतना सादा जीवन बिता रहे थे कि भोले भाले गाँव वाले उन्हें वास्तव में साधु समझने लगे। प्रतिदिन उन्हें भोजन पहुँचाने लगे।

उनमें से एक डाकू कुछ अधिक होशियार था उसे मंत्र वगैरह भी आते थे तथा रामायण आदि कुछ धार्मिक ग्रन्थ भी पढ़ रखे थे। वह रामायण की कहानियों सुनाकर ग्राम वासियों को प्रभावित करने लगा। मंत्रों केा बुदबुदाकर झाड़फूक करता। खेतों में घरों में पवित्र पानी का छिड़काव करता था। अगर किसी गाँव वाले का कोई पालतू जानवर अकेला घूमता मिलता तो बाकी तीनों शिष्य बने डाकू उसे किसी गुप्त स्थान पर बांध देते। जब उसका मालिक उसे ढूँढ़ता हार जाता तब उससे पूछता तो आंखे बंद समाधि सी लगाने का बहाना कर वह कहता तुम्हारा जानवर अभी जिंदा है जैसा जैसा मैं कहता हूँ करो और जिस दिशा में बताई जाओ तो जानवर मिल जायेगा।

यह कहकर वह उसे रास्ता बताता और उस गाँव वाले को अपना जानवर मिल जाता। यह चमत्कार उसने इतनी बार किया कि लोग उसे पहुँचा हुआ महात्मा समझने लगे। उन्होंने उनके लिये कुटिया बनवाई सत्संग भवन बनवाया और मंदिर का जीणोद्वार कर दिया। लेकिन चारों डाकू अपनी आदतों के गुलाम थे रात को चुपचाप गाँव वालों की बत्तख मुर्गी आदि चुराकर खा जाते थे।

गाँव वाले प्रतिदिन श्र(ापूर्वक फल-फूल, तकिया आदि उपहार उनके लिये लाते रहते जो कुछ भी वे डाकू मांगते गाँव वाले तुरंत हाजिर कर देते थे।

एक दिन गुरु साधु बोला, जबसे हम जेल से भागे है कोई भी दावत नही खाई है तुम लोगों का क्या ख्याल है? यह सुनते ही सबकी आंखों में चमक आ गई तो वह बोला लेेकिन तब तक रुकना पड़ेगा जब गाँव वाले मूर्ति की प्रतिष्ठा कर विधिवत मेरे हाथ में मंदिर सौंप देंगे।

जिस दिन मूर्ति की प्रतिष्ठा थी पूरा गाँव मंदिर में एकत्रित हो गया। गुरु ने कहा, मैने ध्यान लगाया था मेरी स्वर्गीय महान आत्माओं से बात हुई थी महामारी फैलने वाली है। प्रेतात्माऐं का प्रवेश होगा। ये प्रेतात्माऐं विनाशत्माऐं होगी इनका मुकाबला कोई नहीं कर पायेगा। तुम लोग चूहे बिल्ली की तरह असहाय मौत मरोगे। मैंने मैंने महान आत्माओं से बातचीत की है कि गाँव वालों की सहायता करें और आने वाले दुर्दिनों से तुम्हारी रक्षा करेें।

गाँव वाले यह सुनकर घबड़ा गये। वे उन साधुओं के पैरों पर गिर गये कि उन्हें बचायें। गुरु बोला इस आगे वाले दुर्भाग्य से बचने का उपाय हो सकता है अगर प्रेतात्माऐं और उनके साथियों की दावत का इंतजाम किया जायेगा। जब वे अंदर भोजन करने में व्यस्त होंगे तब उन्हें निष्क्रय कर मंदिर को चारों ओर से पवित्र जल व धागे से बांध दूंगा। दस बोतल शराब दो सूअर के सिर दस बत्तख दस मुर्गे की बलि चढ़ानी पड़ेगी। कढ़ी, चावल, फल, सब्जी की भंेट चढ़ानी होगी। केले के पत्तों का मंडप बनाकर गुलाब अर्क से छिड़काव करना होगा। खाने की खुशबू से वे मंदिर के अंदर प्रवेश कर जायेंगे तब वे हमारी मर्जी पर होंगे।

यह सुनकर गाँव वालों में कुद जान आई उन्होंने इंतजाम करने का वायदा किया। भविष्यवाणी वाले दिन सब गाँव वाले प्रेतात्माओं के लिये उपहारों से लदे फंदे मंदिर पहुँचे। गुरु ने गंभीर वाणी से कहना प्रारम्भ किया, मित्रों आज का दिन गाँव में प्लेग फैलने का दिन है। मैं और मेरे शिष्य इस मंदिर को पवित्र धागे से बांध देंगे। तीन दिन तक अंदर हम उन आत्माओं को प्रसन्न करने का प्रयत्न करेंगे। तुम सब लोग अपने घरों में जाओ। अंदर से बंद कर ईश्वर की प्रार्थना करो कि संकट का समय टल जाय। जब तक हम धागे को हटायें नहीं कोई भी उसकी सीमा में प्रवेश करने की हिम्मत न करें क्योंकि ये आत्माऐं शक्तिशाली हैं जो भी इसमें अंदर जायेगा वह पागल हो जायेगा। इसलिये ध्यान रखना और हमारी सफलता की कामना करना।

अपने साथियों की सहायता से गुरु ने मंदिर को चारों ओर से पवित्र धागे से बांधा और आशीर्वाद देकर गाँव वालों को विदा किया। गुरु चेलों के साथ अंदर संत्संग भवन में गया और जोर जोर से हो हो करने लगा। खाली भवन में उनकी हो हो गूँज कर ऐसे लग रही थी कि हजारों लोग चिल्ला रहे हो। गाँव वालों को विश्वास हो गया कि प्रेतात्माओं को भोजन की सुगंध आ गई है और वे भोजन करने आ गई है। अपने कान बंद कर वे तेजी से घरों की ओर भाग गये और अंदर बंद करके बैठ गये।

जब साधुओं की विश्वास हो गया कि वे अकेले रह गये हैं तो उन्होंने शराब पीना और खाना प्रारम्भ किया। जैसे जैसे शराब गले के नीचे चली उन्हें रंग चढ़ना प्रारम्भ हुआ कोई चिल्लाने लगा कोई गाने लगा। एक ने उठकर नाचना प्रारम्भ कर दिया। एक ने जोर जोर से अपने पुराने पापों का बखान प्रारम्भ किया और जोर जोर से हंसने लगे कि किस प्रकारसरलता से गाँव वालों केा वेवकूफ बनाया है।

नाई स्वरूप कुछ दिन पहले गाँव से दूर में अपने रिश्तेदार से मिलने गया हुआ था। उसे साधुओं की भविश्यवाणी आदि के विषय में ज्ञात नहीं था। उसी रात वह वापस लौट रहा था कि रास्ते में मंदिर पड़ा। मंदिर का बगीचा पार करने पर उसके  घर का रास्ता छोटा पड़ता था। अनजाने में ही धागे को पारकर वह मंदिर के पास से गुजरा तो अंदर से आने वाले शोर केा सुनकर वह ठिठक गया। अंदर से शराबियों की बातें और हंसना सुनकर वह सन्नाटे में आ गया। साधुओं की कुटियाएँ देखी तो वे खाली थी। उसने संत्संग भवन में झिरी से झांका। चारों साधुओं के चोगे एक तरफ पड़े थे और वे खाना खाने पीने में लगे हुए मस्त हो रहे थे।

पहले तो वह वेवकूफों की तरह खड़ा रहा कि क्या करना चाहिए। कोई हथियार उसके पास था नहीं। अकेले चारों से लड़ना वेवकूफी होगी। उसने पूरे गाँव को जमाने का निश्चय किया। दबे पांव वह जल्दी से गाँव की ओर भाग लिया। गाँव में पहुँच कर यह देख कर हैरान रह गया कि गाँव का हर दरवाजा बंद है यहाँ तक कि उसका अपना घर भी और हर दरवाजे के पीछे से भजन गीत आदि की आवाज आ रही है। उसकी कुछ समझ नहीं आया तो वह जोर से बोला, हो! हो! इस सबका क्या अर्थ है? तुम लोग ऐसे क्यों प्रार्थना कर रहे हो? पता है जिन चारों साधुओं को हम इतने दिन से खिला पिला रहे थे वे सब मंदिर में नाच गा रहे हैं शराब पी रहे हैं। आओ चलो उन्हें पकड़कर पुलिस के हवाले कर दे वे लोग जेल से भागे डाकू है।

पहले तो नाई की आवाज सुनकर गाँव वाले समझे कि प्रेतात्माएँ बाहर निकल आई है और अब हमें खाने आई है लेकिन ध्यान से सुनने पर उन्होंने नाई की आवाज पहचान ली और समझ गये कि वह पवित्र धागे की हद पार करके मंदिर के पास से आ रहा है। आवश्य अब पागल हो गया है। उसके पिता ने दरवाजा खोला और जल्दी से पकड़कर उसे अंदर बंद करने लगे वह चिल्ला कर बोला, मैं पागल नहीं हूँ बिलकुल ठीक हूँ जिन्हें तुम साधु समझ रहे हो वे डाकू है मैंने झिरी से झांककर देखा है अगर विश्वास नही है तो मेरे साथ चल कर देख लो।

लेकिन किसी ने भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया ज्यों ज्यों उसकी आवाज ऊँची होती गई उन्हें विश्वास होता गया कि वह पागल हो गया है और उसे अंदर बंद कर दिया। नाई स्वरूप का दिल बैठने लगा कि ये तो उसे पागल समझ रहे हैं सत्य को समझ ही नहीं रहे है। 

नाई स्वरूप समझ गया कि गाँव वालों को ऐसे नहीं समझाया जा सकेगा। मन ही मन वह कोई उपाय सोचने लगा। सुबह वह उठा और ऐसे व्यवहार करने लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। घरवाले से हंस हंस कर बात कर रहा था। गाँव वाले चारों ओर घिर आये और उसकी पीठ थपथपा कर बोले कि भगवान का लाख लाख शुक्र है कि तुम ठीक हो गये नहीं तो हम समझे थे कि तुम पागल हो गये हो। 

नाई स्वरूप अब इस इंतजार में था कि किस प्रकार से उन साधुओं की पोल सबके सामने खोले और हरदम उन पर नजर रखने लगा। एक दिन उसने एक चेले को गाँव के एक खेतिहर की गाय को ले जाते देखा। उसे उसने बाग के पीछे एक गड्डे में ले जाकर बांध दिया। तुरंत चतुर नाई के दिमाग में सारा खेल समझ में आ गया। उसने उस चरवाहे को जाकर बताया और कहा कि वह गुरु महाराज से जाकर पूछे वे ही बतायेंगे पहले तो चरवाहा स्वरूपा नाई को शक की निगाह से देखता रहा कि कहीं पागलपन का असर तो नहीं है लेकिन फिर अपनी गाय को देखा और गुरु महाराज के पास जाकर गाय के विषय में पूछा तो मंत्र आदि पढ़ने का नाटक कर गुरु महाराज ने वहीं पर गाय का बंधा होना बताया तो चरवाहे को भी गुरु महाराज पर शक हो गया।

अब स्वरूपा के साथ वह चरवाहा और दो तीन गाँव के नवयुवक भी हो गये क्योंकि उन्हें भी साधुओं पर कुछ कुछ शक था। कई बार मुर्गी बत्तख के पंख मंदिर के पास देखे थे। एक बार छोटे चूजे पकड़ते देखा भी था।

स्वरूपा नाई और चरवाहे ने पुलिस के सिपाहियों के पकड़े पहने और डंडा घुमाने अपने साथ के युवकों के घर में घुसे। उधर वे युवक मंदिर की हद के पास जहाँ दो चेले झाडू लगा रहे थे कहने लगे, आज गाँव में पुलिस घूम रही है। कुछ महिने पहले चार डाकू जेल से भाग गये थे पुलिस वालों को खबर लगी है कि वे इधर ही की तरफ आये है, यहाँ तो सब गाँव वाले ही है पता नहीं।

उन चेलों का चेहरा वे ध्यान से देख रहे थे। चेलों का चेहरा फक हो गया तुरंत ही वे मंदिर के अंदर चले गये। उधर नाई स्वरूपा और उसकस साथी गाँव प्रधान को अपनी योजना समझा कर ले आये थे और कहा था यदि उसकी बात गलत निकले तो उन्हें पागल समझ ले। साथ में गाँव के अन्य व्यक्ति भी थे। दोनों मंदिर के पास उपस्थित युवकों ने बताया कि उनकी बात सुनकर चेले अंदर चले गये है। अब मंदिर को चारों ओर से घेरकर सब दूर दूर पर छिपकर बैठ गये कुछ ही देर में चारों साधु मंदिर के पिछवाड़े से छिपते छिपते भागने के लिये निकले। सब लोग उनके पीछे लग गये। कुछ आगे चलने पर वे एक गुफा में गये वहाँ से उन्होंने गाँव वालों से धोखाधड़ी कर करके एकत्रित धन उठाया और गाँववालों का वेश बना कर बाहर निकले ही थे कि गाँववालों ने घेर लिया। अब साधु घबड़ा गये। नाई स्वरूपा और उसके साथ ने डंडा खटखटाते हुए उन्हें गरेबां पकड़ा और कहा, क्यों बच्चू बहुत मना ली मोज। तो साधु थरथर कांपने लगे। अब गाँववालों को पूरा विश्वास हो गया कि वे डाकू है सब उन्हें पीटने लगे। गाँव प्रधान ने किसी तरह से उन्हें बचाया और थाने पहुँचा दिया यहाँ नाई स्वरूपा को और अन्य युवकों को घोषित इनाम के रुपये मिले।

डाॅ॰ शशि गोयल