अनोखा अभियान
5 सितम्बर 1970 शनिवार डा॰ ज्यूडिमर उम्र 29 साल और ओसवाल्ड औल्ज उम्र 27 साल दोनों ने केन्या पर्वत की चढ़ाई सम्पूर्ण की ही थी विजय दर्प से उन्होने चारों ओर देखा और फिर 5000 मीटर नीचे हरी धरती देखी। चार साल से वे दोनों पर्वत चढ़ने का अभियान चलाये हुए थे पर इस पर्वत की सुन्दरता अपूर्व थी। पर्वत केन्या की दो चोटियों में बेतियन चोटी 5199 मीटर ऊँची थी इसकी चढ़ाई एकदम सीधी होने की वजह से कुछ ही पर्वतारोही इसकी चोटी पर पहुँच पाते थे। इन दोनों से पूर्व जाम्बिया और दो अमेरिकी व्यक्तियों का एक दल चढ़कर लौटा था। और करीब 750 मीटर नीचे आराम कर रहा थ।
दोनों आस्ट्रियन युवकों ने बैतियन चोटी के फोटो लिये और 2 बजे नीचे उतरना प्रारम्भ किया। एक दूसरे में बंधे 30 मीटर नीचे एक समतल स्थान पर उतरने के बाद ओल्ज रस्सी बाँधने के लिये चट्टान तलाशने लगा। ज्यूडीमर भी रस्सी बाँध कर एक स्थान पर झुक कर नीचे उतरने का रास्ता देखने लगा।
एकाएक चीख उमरी और ओल्ज वहाँ अकेला रह गया। ज्यूडीमर के नीचे की चट्टान खिसक गई थी। ओल्ज रस्सी के लिये झपटा क्योकि अभी वह ऊपर ही थी। रस्सी हाथ में आ गई और सरकती गई उसे महसूस हुआ कि उसका माँस जल रहा है और दर्द हो रहा है उसने अपनी एड़ी कस कर जमीन में गाड़ दी और बाद में रस्सी लपेट कर ज्यूडीमर को गिरने से रोकने की कोशिश करने लगा।
धड़़कते दिल से ओल्ज ने एक मजबूत चट्टान के साथ रस्सी बाँधी और उतर के दोस्त के समीप गया। ज्यूडीमर एक चट्टान के उभरे किनारे पर बैठ गया था। उसका सिर लहूलूहान हो रहा था। ओल्ज ने देखा ज्यूडीमर के सीधे पैर की एक हड्डी टूट कर बाहर निकल आई थी और करीब 5 संेटीमीटर हड्डी का टुकड़ा बाहर टूटा पड़ा था। जाघ में से तेजी से खून बह़ रहा था
ओल्ज ने जल्दी से एक प्लास्टिक पट्टी उस स्थान पर बाँध दी। ‘मेरा समय आ गया,’ ज्यूडीमर बोला ओल्ज कुछ न कहकर काम करता रहा। उसने ज्यूडीमर के घाव साफ किये और ज्यूडीमर को कसकर चट्टान से बाँध दिया। जिससे वह गिर न पड़े वह देख रहा था सहायता शीघ्र संभव नही है किसी भी क्षण ज्यूडीमर मृत्यु पथ पर बढ़ सकता है पर उसने वही किया जो उस समय कोई कर सकता था। मै दवाई और सहायता के लिये आदमी ले कर आता हूँ। ‘कोई आशा है?’ ज्यूडीमर ने निरशा से सिर हिलाते हुए कहा।‘ ‘देखता हूँ पूरी कोशिश करूंगा।’
ठंड बढ़ने लगी थी। ओल्ज ने अपनी नीचे की दोनों जैकेट और कम्बल ज्यूडीमर को ओढ़ा दी और सोने के बैग में लिपटाकर उसके पास खाने के लिये फल रखकर उसे रस्सी से बाँधकर उससे विदा ले नीचे चल दिया।
ओल्ज की घायल हथेली रस्सी पकड़ने में बहुत तकलीफ दे रही थी। दर्द की वजह से उसे रूकना भी पड़ रहा था। बर्फ की वजह से चट्टाने फिसलनी हो रही थी और बर्फ इतनी अधिक पड़ रही थी कि वह एक दो कदम से आगे देख नही पा रहा था। पर ऊपर अकेले पड़े ज्यूडीमर का ध्यान उसे निरन्तर बढ़ा रहा था। करीब छः बजे वह नीचे ठहरे हुए दल के समीप पहुँचा और उसे सब बताया।
एक जाम्बियन 4800 की ऊँचाई पर स्थित टॉप हट पर दवाइयों के लिये और सौर्य ऊर्जा से संचालित रेडियो पर संदेश देने के लिये ढाई घंटे की निरन्तर यात्रा कर पहुँचा और नारों मोरू गाँव की पुलिस को इतला दे दी।
एक पर्वतारोही बचाव दल और केन्या पुलिस पर्वतारोही संस्था के उत्साही सदस्य रार्बट चैम्बसे की अध्यक्ष पाँच घंटे के अंदर ऊपर तेजी से चढ़ रहे थे। दुर्भाग्य से उस समय उपस्थित अधिकतर व्यक्ति काफी दिन से पर्वत पर चढ़े नही थे या चढ़ने के अयोग्य थे।
लेकिन ज्यूडीमर को वहाँ मरने के लिये छोड़ा नही जा सकता है उन्होनें निश्चित किया कोशिश तो करनी ही है। उधर सुबह चार बजे तक वह जाम्बियान दवाईयां लेकर ओल्ज के पास पहुँच गया। एक अमेरिकन रिचार्ड साइक के साथ वे और ओल्ज ऊपर चल दिये। इस समय तक अठारह पर्वतारोही केन्या पुलिस के सिपाही और चार अन्य अधिकारी ऊपर ज्यूडीमर की सहायता के लिये चढ़ रहे थे एक हेलीकोप्टर भी रवाना हो गया था।
लेकिन ओल्ज को वापस लौटना पड़ा सारा दिन बर्फ गिरती रही और वह चढ़ गया सात सितम्बर चार तीस पर दोपहर ओल्ज ने उस चट्टान के पास पहुँच कर आवाज लगाई पर कोई आवाज नही आई। तीन घंटे से अकेले पड़े ज्यूडीमर को बार बार लग रहा था कि वह नीचे गिर पड़ेगा। वह चेतनाहीन हो गया।
ओल्ज ने ज्यूडीमर को देखा बुदबुदाया अभी जीवित तो है कम से कम मै सोच रहा था कहीं नीचे न गिर पडे़। उसने एक मार्फीन का इजैक्शन लगाया। ब्रूसों ने रेडियो से बचाव दल से सम्पर्क चाहा कि ज्यूडीमर अभी जीवित है लेकिन सम्पर्क नही हो पाया और वे स्टेªचर का इंतजार करने लगे।
प्रातः काल एक हैलीकोप्टर उतरा लेकिन हेस्टिग को रस्सियों के लिये फिर वापस जाना पड़ा। ओल्ज ने एक इंजैक्शन ज्यूडीमर के और लगाया और उसके टूटी हड्डी के नीचे कैमरा लकड़ी की तरह लगाकर बाँध दिया ज्यूडीमर को बंडल की तरह बाँधकर एक व्यक्ति के पीछे लाद दिया। लेकिन ज्यूडीमर एक दम जोर से कराह उठा। ओल्ज चिल्लाया उसे नीचे रख दो वह मर जायेगा। नीचे से आने वाला दल ग्लूकोज बगैरह लाया उसी ने उस दोपहर ज्यूडीमर की जान बचाई।
बुधवार को हैलीकोप्टर की घरघराहट सुनाई दी। सबके दिल में आशा जगी कि अब ज्यूडीमर बचा लिया जायेगा। यद्यपि यह सभी जानते थे कि हैलीकॉप्टर मे तो ज्यूडीमर को ले जाया नही जा सकता। परन्तु रस्सियों से बाँधकर शायद कुछ उम्मीद बन सके। लेकिन उसी समय एक धमाका हुआ और हैलीकॉप्टर उभरी चट्टान से टकरा गया और हेस्टिग वहीं समाप्त हो गया। ज्यूडीमर का दिल डूबने लगा उसने अपना मुँह अपने बैग में छिपा लिया।
उधर ज्यूडीमर के पिता भी अपनी पूरी कोशिश में थे। बुधवार की रात बहुत कष्टप्रद रही। बुखार से तपता ज्यूडीमर पानी पानी चिल्लाता रहा लेकिन पानी होठों से लगाते ही फेंक देता।
उस दिन और उसके दूसरे दिन 34 पर्वतारोही ज्यूडीमर को नीचे लाने की कोशिश करते रहे। तीखी हवायें और काटती सर्दी मे लड़ते वे ज्यूडीमर को 120 मीटर नीचे लाने में सफल हो गये।
शुक्रवार की सुबह आस्ट्रियन बचाव दल नैरोबी पहुँच गया एक पुलिस हवाई जहाज में भरकर वे नानयूकी पहुँचे आखिरी पन्द्रह किलोमीटर उन्होने पैदल पार करने थे। आधी रात को पहुँच कर वे वहाँ बाकी यात्रा की तैयारी करने लगे।
शनिवार सुबह आस्ट्रियन बचाव दल ने चढ़ना शुरू किया। ऊपर से ज्यूडीमर को लेकर उतरने वाले किसी न किसी प्रकार 120 मीटर नीचे और उतार लाये। लेकिन अब उनकी हिम्मत जबाब दे गई थी साथ ही बरसात भी होने लगी। ज्यूडीमर का चेहरा प्लास्टिक के कपड़े से ढक दिया।
कुछ देर बाद ओल्ज फुसफुसाया ,‘अब हालत नाजुक है’। एक बोला ,‘कहीं इतनी सब मेहनत बेकार न जाय।’लेकिन ज्यूडीमर ने तभी आँखे खोली और धीमे स्वर में बोला,‘यात्रा बेकार नही जायेगी। ’
उन सबमें एक नया उत्साह भर गया और तेजी से वे ज्यूडीमर के बंडल को लटकाये नाइलॉन की रस्सियों पर लटकते 200 मीटर नीचे और उतर आये। फिर फिसलनी तिरछी चट्टानें आयीं बर्फ की टूटी चट्टानंे पार करते 10 बजे के करीब उन्हें कामी की रोशनियों चमकती दिखाई दीं । आस्ट्रियन पर्वतारोहियो के लिये यह अनोखा पर्वतारोहण था जिसे में उन्होने अफ्रीका की सबसे खतरनाक चोटी की चढ़ाई केवल 54 घंटों में की थी और उसमें भी एक अधमृत व्यक्ति को उतार लाये थे।
अभी ज्यूडीमर को तो आपरेशन बगैरह से गुजरना था लेकिन उसने सब को गदगद कंठ से धन्यवाद दिया उसकी आँखे भर आयी। लेकिन उसके पिता ने रोते हुए मृत पाइलट हेस्ंिटग को याद करते हुए कहा,‘ मै अपना सिर उस महान आत्मा के सम्मान में झुकाता हूँ जिसने उस व्यक्ति के लिये अपना जीवन दान कर दिया। जिसे देखा तक नही। मेरे घर से उसका नाम कभी नही मिटेगा। ’
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