Saturday, 20 July 2024

jadui batta

 चंद्र ग्रहण

एक वृद्ध विधवा मृत्युशैया पर लेटी थी। उसके दोनों पौत्र पास ही खड़े थे। बच्चों वह बोली, और दादियों की तरह मैं तुम्हारे लिये सोना-चांदी तो छोड़ नहीं जा रही हूँ। बड़े के लिये सिल और छोटेे के लिये बट्टा छोड़े जा रही हूँ यह कहकर मर गई। बड़े भाई ने सोचा मैं इस सिल को लेकर क्या करूँगा ? मुझे कोई रसोई में नौकरी तो करनी नही है। उसने सिल रसोई में ही छोड़ी और परदेश मेहनत करके कमाई करने लगा। और बड़ा आदमी बन गया।

छोटे भाई को दादी पर अटूट श्रद्धा थी, जरूर बट्टे को कोई न कोई उपयोग जरूर होगा छोटे ने सोचा नही तो दादी क्यो देती? यह सोच कर वह जहाँ भी जाता उसे साथ ले जाता। अड़ोसी-पड़ोसी खूब हंसते। वह लकड़ी बेच कर अपनी रोटी का गुजारा करने लगा परंतु गरीब ही रहा।

एक दिन जब वह लकड़ी बीन रहा था एक सुर्पिणी वहाँ आई। छोटा लड़का डर के मारे पेड़ पर चढ़ गया। सर्पिणी बोली, डरो नहीं मैं तो बस तुम्हारा बट्ट़ा उधार लेने आई हूँ। इसका क्या करोगी? छोटे भाई ने पूछा, मेरे पति अभी ही मर गये है सर्पिणी बोली अगर उनके नथुनों से यह जादुई बट्टा लगा दिया जाय तो वह फिर से जीवित हो जायंेगे।’

‘ मैं नही जानता कि यह बट्टा जादुई है ?’छोटे भाई ने आश्चर्य से पूछा,

‘मेरे साथ आओ तुम्हें पता चल जायेगा ,’सर्पिणी ने कहा, वह उसके पीछे पीछे घने जंगल में गया वहाँ एक सर्प मरा पड़ा था। उसने अपना बट्टा उसके नथुनों से लगाया वह फौरन जीवित हो गया।

‘इस बट्ट़े की शक्ति इसकी सुगंध में है’। सर्पिणी ने कहा,‘ परंतु यह तब ही तक रहेगी जब तक कि तुम किसी से बताओगे नहीं।’ तब दोनों छोटे भाई को धन्यवाद कह चले गये।

छोटा भाई गाँव के लिये चला रास्ते में उसे एक कुत्ते का शव मिला। उसे मरे देर हो चुकी थी इसीलिये उसकी देह अकड़ गई थी। उसने जैसे ही उसके नथुने से अपना बट्टा लगाया कुत्ता उछल कर खड़ा हो गया। छोटे भाई ने उसका नाम अकड़ रखा। अकडू तब से अपने जीवनदाता का स्वामिभक्त वफादार साथ हो गया।

शीघ्र ही छोटा भाई मृत्युंजय वैद्य के नाम से प्रसिद्ध हो गया। किसी को भी यह पता नहीं लग पाता था कि यह बट्टा है जिसके कारण रोगी ठीक हो जाते हैं। वे समझते वह बट्टा केवल दवा पीसने के लिये रखता है। कुछ दिन बाद राजा की लड़की का देहांत हो गया। राजा ने छोटे भाई को बुलाया छोटे भाई ने राजकन्या को जीवित कर दिया। बदले में राजा ने राजकुमारी की शादी छोटे भाई से कर दी।

एक दिन छोटे भाई ने सोचा अगर यह बट्टा मृत्यु को जीवन में बदल सकता है तो बुढ़ापे को भी जीत सकता है। यह सोचकर प्रतिदिन एक बार खुद सूंघता एक बार राजकुमारी को सुंघा देता। राजकुमारी सोचती यह वैद्यराज की कोई सनक होगी। कुछ वर्ष बाद छोटे भाई को लगा कि उसने बुढ़ापे की दवा ढूँढ़ ली है ,क्यांकि वह और राजकुमारी जरा भी उम्र में नहीं बढ़े थे। लेकिन चंद्रमा को दोनों मृत्युलोक के निवासियों से जलन होने लगी। सूर्य तक बुड्डा हो रहा है चंद्रमा ने सोचा प्रतिदिन शाम को वह लाल भूरा सा कुम्हलाया हो जाता है वह बट्टा चुराने का मौका देखने लगा।

एक दिन बट्टा कुछ भीग गया इसीलिये छोटा भाई उसे धूप में बैठकर सुखाने लगा। ‘मेरे सरताज’, राजकुमारी ने हठ करते हुए कहा ,‘आप एक राज्य के उत्तराधिकारी हैं। आप एक बट्टे को लेकर धूप में सुखाने बैठे रहें, कुछ अच्छा नही लगता। यह काम सैनिकों पर छोड़ दो।’

 राजकुमारी ने इतनी हठ की कि उसे छोड़ना ही पड़ा लेकिन उसे किसी का विश्वास नहीं था। इसलिये वह अकडू को वहाँ पर बिठा अंदर आ गया। अकडू बट्टे को देखने लगा। चंद्रमा को मौका मिला और वह बट्टा चुराने आकाश से नीचे आया। सूर्य की तेज रोशनी में धुंधलाया चांद अकडू को दिखाई न दिया और चांद बट्टे को लेकर भागा ,बट्टे की खुशबू के सहारे वह चंद्रमा के पीछे भागा।

तब से लगातार कुत्ता चंद्रमा का पीछा कर रहा है। रात में तो उसे चंद्रमा दिखाई देता है। परंतु दिन में वह बट्टे की सुगंध के सहारे पीछा करता है। क्यांेकि रातदिन वह बट्टे को सूंघता रहता है इसलिये वह अमर हो गया है। कभी वह उसे पकड़ लेता है और निगलने की कोशिश करता है लेकिन कठोर होने की वजह से निगल नहीं पाता और उसे उगलना पड़ता है फिर से दौड़ शुरू हो जाती है।


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