झक्कड़ दानव
किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। उसका पुत्र बड़ा निकम्मा और आलसी था जबकि बुढ़िया लोगों का धान आदि कूट कर अपना व उसका पेट पालती थी। एक साल गाँव में अकाल पड़ा, बुढ़िया को वह काम भी मिलना बंद हो गया अब घर में फाके होने लगे तो लड़का लोगों के खेतों पर थोड़ी बहुत मजदूरी करने लगा। धीरे धीरे सभी काम काज बंद हो गये गाँव े में सभी परेशान रहने लगे। घर की गाय का दूध पहले तो बिक जाता था अब वह भी नही बिकता था गाय का चारा पानी नहीं मिल रहा था तो उसने दूध भी देना कम कर दिया। दो दिन से बचे दूध को बुढ़िया ने जमाया और मटकी में भरकर लड़के को देते हुए बोली,‘ बेटा जरा काम काज ढंग से कर। यह दही शहर ले जाकर बेच दे। वहीं से कुछ पैसों का खाना और कुछ पैसों का ठेल लगाने लायक सौदा ले आना यहाँ बेच देंगे।’ यह कह के रस्सी की इंडुरी बनाकर लड़के के सिर पर मटकी टिका दी।
माँ ने खाना लाने के लिये थैला दिया और कहा कि लौटते में जंगल पड़ेगा कंद मूल तोड़ लाना। वही रास्ते में खा लेना। यह कहकर एक चाकू थैले मे डाल दिया। लड़के ने थैला गले में लटकाया और ‘दही लो दही’ की आवाज लगाता चल दिया।
चलते चलते लड़के को जंगल में एक मकान दिखाई दिया। लड़के ने सोचा कुछ देर आराम किया जाय फिर आगे चला जाय। वह उस खाली पड़े मकान में घुसा। चारों ओर देखा तो हैरान रह गया। बड़ी सी हांडी में खाना पक रहा था पर पकाने वाला कोई दिखाई नहीं दिया। उसने ‘कोई है! कोई है!’ की आवाज लगाई। किसी ने जबाब नही दिया तो ऊपर अटारी पर चढ़ कर लेट गया। लेटते ही उसे नींद आ गई।
वह मकान एक राक्षस का था। कुछ ही देर में वह वापस आया। घर में घुसा कि उसे मानुष गंध आई। वह चिल्लाया मानुष गंध! मानुष गध! लड़के की नींद खुली भयानक राक्षस की चारों ओर सूँ सूँ कर सूंघते देख एक बार तो डर गया परंतु हिम्मत नही खोई हांडी में मुँह दे जोर से धरधराती आवाज बनाता हुआ बोला ‘यह कौन मूर्ख है जिसने मेेरी नीद खराब की। उसकी शामत आई है क्या?’
राक्षस को ताज्जुब हुआ कि ऐसा कौन व्यक्ति आ गया जो उससे इस तरह बोल रहा है। अब तक उसने सबको घिघियाते ही देखा था वह अकड़ कर बोला, ‘मैं..मैं..अक्कड़ दानव हूँ।’
‘ तो लगता है तूने मेरा नाम नही सुना कभी , मैं झक्कड़ दानव हूँ। चल भाग यहां से मुझे सोने दे।’
‘क्या? ’अक्कड़ दानव को बहुत गुस्सा आया ,‘तू क्या समझता है अपने आपको। मेरे जैसा शक्तिशाली कोई नही है।’
‘अच्छा ’हा! हा! हा! कहकर लड़का जोर से हँसा,‘ अगर तू मुझसे बड़ा है शाक्तिशाली है तो मैं अपना बाल फेंकता हूँ अपने बाल से मिला लेना ’कहकर लड़के रस्सी फेंक दी। राक्षस इतना बड़ा बाल देख हैरान रह गया। फिर भी बोला ,‘मैं नहीं मानता’‘ अच्छा तो मैं थूकता हूँ तू भी थूक।’ राक्षस ने जोर से गला खखार कर थूका लेकिन लड़के ने दही उलट दिया। अब तो राक्षस डर गया पर फिर भी हिम्मत नही हारी बोला, ‘अच्छा देखते है जो ज्यादा खायगा वही बड़ा है।’
लड़के ने थैला कमीज के नीचे किया और अटारी पर से उतर आया। अपने सामने एक लड़के केा देख पहले तो जोर से हँसा फिर दो बड़ी बड़ी हंडिया में खाना परोसा। दोनों ने खाना शुरू किया। लड़का सारा खाना थैले में भरता जा रहा था कभी कभी दिखाने को एक दो ग्रास खा लेता। जब उसका थैला भर गया तो बोला अभी बस इतना ही खा सकता हूँ पहले इतना खाना निकाल दूँ तब और खाऊँगा यह कहकर चाकू से थैला चीर दिया। सारा खाना बाहर निकल आया। फिर खाने की तैयारी करने लगा। राक्षस का भी पेट भर गया था उसने सोचा यह तरकीब अच्छी है। उसने चाकू उठा कर पेट चीर लिया। राक्षस तड़प कर वही ढेर हो गया। लड़के ने राक्षस का सब धन बटोरा और वापस घर आ गया और माँ के साथ सुख से रहने लगा।