ऊधमी चुन्नू मुन्नू
चुन्नू मुन्नू दोनों चुहे
ऊधम बहुत मचाते
कुतर कुतर कर कागज कपड़ा
फिरते थे इठलाते
इक दिन देखा लाला के घर
रोटी दाल पकाते
तब दोनों के मन में आया
खाना चलो बनाते
मोदी लाला की दुकान से
आटा दाल चुराया
एक पेड़ के नीचे जाकर
चूल्हा एक जलाया
मिट्टी के कुल्हड़ में भरकर
बड़ी चटपटी दाल बनाई
रोटी बेली गोल गोल
और बड़े मजे से उसे फुलाई
एक फूल कर गेंद बनी
एक रह गई चपटी चपटी,
फूली पर जीभ दोनों की
खाने को थी रपटी
फूली रोटी मैं ही लॅंूगा
मैं लाया था आटा
चुन्नू बोला मैं ही लूॅंगा
तु खायेगा चॉंटा
वे दोनो लड़ रहे इधर थे
उधर कूद कर बंदर आया
चुपके चुपके रोटी खाकर
भरे पेट पर हाथ फिराया
दाल फैल गई झटके से
पानी पिया मटके से ।
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