च्ंादा के घर आई दादी
गोल रुपहले रथ पर चढ़कर
चंदा के घर दादी आई ,
बैठंूॅंगी कुछ दिन तेरे घर
इन्द्रलोक से चलकर आई ।
चक्कर सात लगाये हैं
परीलोक को जाउंगी
तबतक थोड़ी देर ठहरकर
मोतीचूर बनाउंगी ।
कामधेनु से दूध लिया है
खोआ यहीं पकाउंगी
मेवा केशर और चाशनी
उसमें खूब मिलाउंगी।
चंदा बोला दादी अम्मा
समझो इसको अपना घर
मर्जी आये वही करो तुम
नहीं यहॉं पर कोई डर।
बादल ने अम्मा को देदी
थोड़ी दूध मलाई
तब अम्मा ने बिजली से
थोड़ी थेाड़ी आग मंगाई
गोल चमकते लड्डू का
अम्मा ने था ढेर लगाया
आसमान से गंधर्वों को
लड्डू खाने को बुलवाया
चंदा को भी खूब खिलाये
लड्डू मोती चूर के
खुषबू वाले मेवा वाले
मीठे मीठे बूर के ।
बाकी लड्डू भर झोली में
चंदा से दादी यॅूं बोली
परी लोक में भी ले जाऊ
लड्डू भरकर झोली।
दादी बैठी अपने रथ पर
रख झोली बादल के सर
खुषबू पाकर हवा चली
झांका झोली के अंदर
धीरे धीरे फाड़ी झोली
लड्डू झर गये सारे
लपक न पाई दादी उनको
चमके बनकर तारे ।
No comments:
Post a Comment