Friday, 27 December 2024

pani poori

 पानी पूरी

 पानी पूरी गोलगप्पा 

गुपचुप टिकिया और पड़ाका

खट्टा मिट्ठा पानी भरकर

गप गप खायें लेयें चटाखा

मटर सोंठ और आलू भरकर

झटपट दोना आगे करकर

मुन्ना खाये मुन्नी खाये

खाये काकी काका

गुपचुप टिकिया और पड़ाका

पानी पूरी गोलगप्पा 

टपक रहे हैं ऑंख से ऑंसू

मुॅुंह से सी सी निकल रही है

अभी और खाने हैं हमको 

  • सट सट सट सट करे सटाका

गुपचुप टिकिया और पड़ाका

गोल गोल और फूला फूला 

मुॅह में लाया पानी

गोल गप्पा  गोल गप्पा 

मुॅंह में बजे पटाका

गुप चुप टिकिया और पड़ाका

             पानी पूरी गोल गप्पा


pani

 सबसे प्यारा पानी

सरदी में पानी छूते ही 

बिजली सी छू जाती है

पानी देख देख कर मुझमें

 ठंडी सी भर जाती है

पड़ न जाये एक बॅंूद भी

 तन पर पानी से बचते हैं

गरम गरम पानी से नहाते 

तब भी थर थर कंपते हैं

गरमी में मांगे सब पानी

सबसे प्यारा लगता पानी

 


Tuesday, 24 December 2024

chanda ki barat

 च्ंादा की बरात


 


च्ंादा की बारात सजी है


झिलमिल तारे बने बराती


बादल बाजे चले बजाते


चपला नृत्य दिखाती ।


आसमान का चक्कर लेकर


 सूरज के दरवाजे आई


चंदा का स्वागत करने


किरणें अगवानी को आईं।


सूरज की बेटी घूंघट में


धीरे से पग धरती आई


लाज भरे नयनों से हंसकर


ऊषा ने माला पहनाई


क्रते हुए विदा बेटी को


स्ूारज की ऑंखे भर आईं


गले लगा बेटी को कसकर


छल छल छल ऑंखें छलकाईं ।


 


 

Sunday, 22 December 2024

kahan ja rahe badal bhaiya

 कहॉं जा रहे बादल भैया


मुझको जरा बताओ ,


इतनी जल्दी क्या है तुमको


तनिक देर रुक जाओ ।


थोड़ा सा पानी ,खेतांें को


थोड़ा सा पेड़ांें को


कुछ पानी तालों को देदो


 कुछ पानी मेड़ों को


भारी भारी लाद पोटली


क्यों भागे जाते हो


पौधे सारे सूख रहे हैं


इनको क्यों तरसाते हो ।


नदिया हो गई दुबली दुबली


प्यासी सूख रहीं हैं,


तुमको पानी लाते देखा


मन तें हूक रही हैं


क्रते हो कल्याण जगत का


निर्भर तुम पर सब प्राणी


तुमसे ही है भरा समंदर


धरती की चूनर धानी ।


 


Saturday, 21 December 2024

Anmol ankhen bal geet

 

vueksy vka[ksa

 

lcls I;kjh ;s vka[ksa

lcls U;kjh nks vka[ksa

budk dksbZ eksy ugha

dksbZ rjktw rksy ugha

>jus lh f>yfey vka[ksa

Lkxj lh xgjh vka[ksa

Lkkou lk ygjkrk ekSle

Ckkny lh dkyh vka[ksa

Lkwjt pank nhi flrkjs

Lkcdks djrh jks’ku vka[ksa

Eku dh lkjh ckrsa dgrha

Tkhou /ku vuqie vka[ksa

vuqfpr ckrksa dks ns[ksa rks

>qd tkrh ;s fueZy vka[ksa

I;kj usg viuksa ls ikdj

gal nsrha [kqf’k;ksa ls vka[ksa

Øksf/kr gksus ij ty mBrha

Ykky vxu lh ngdsa vka[ksa

d#.k Hkko muesa vk tk;s

vkalw ls Hkj tkrh vka[ksa

Friday, 20 December 2024

Why do we say it

 

To eat humble pie

                                                                                                                                                                                                                To apologize for one’s behavior, the correct term is umble pie that is still made in some parts of Britain. It is a pastry and contains the odd and ends of the edible parts of the inside of an animal called “Umbles”It was gratefully received from their rich master by the poor people of long ago and to eat this was to confirm  one’s poverty and dependence upon some other person. It is not known how the “H” got in to the recipe