नानीघर
निकल निकलकर जब आती है
बचपन तेरी बीती बातें
रात रुपहली भोर सुनहरी
प्यार से भीगी थीं बरसातें ।
राजा थे हम नानी घर के
गेादी नाना की सिंहासन,
हम थे कृष्ण कन्हैया घर के
नानी का घर था वृन्दावन।
जिद करते यदि हम चंदा की
तारे तो आ ही जाते थे
थम्मक थम्मक हाथी चलता
घुटने चल नाना बहलाते।
रात चाॅंदनी में गद्दों पर
नानी कहती नई कहानी
बौना लेकर आता गाड़ी
बैठ कर आते राजा रानी।
सुनते सुनते हम सो जाते
नानी भी सो जाती थी
जब हम घर को वापस आते
गले लगा रो जाती थीं ।