ंडाकू और नाई
दादा के समय की कहानी है। चार बड़े डाकू जेल से भागकर साधु का वेश बनाकर गाँव गाँव घूमने लगे। एक दिन घूमते घूमते वे एक गाँव के बाहर वीरान पड़े मंदिर में पहुँचे। मंदिर अच्छा खासा रहने लायक था उन लोगों ने वही अड्डा जमा लिया। वे इतना सादा जीवन बिता रहे थे कि भोले भाले गाँव वाले उन्हें वास्तव में साधु समझने लगे। प्रतिदिन उन्हें भोजन पहुँचाने लगे।
उनमें से एक डाकू कुछ अधिक होशियार था उसे मंत्र वगैरह भी आते थे तथा रामायण आदि कुछ धार्मिक ग्रन्थ भी पढ़ रखे थे। वह रामायण की कहानियों सुनाकर ग्राम वासियों को प्रभावित करने लगा। मंत्रों केा बुदबुदाकर झाड़फूक करता। खेतों में घरों में पवित्र पानी का छिड़काव करता था। अगर किसी गाँव वाले का कोई पालतू जानवर अकेला घूमता मिलता तो बाकी तीनों शिष्य बने डाकू उसे किसी गुप्त स्थान पर बांध देते। जब उसका मालिक उसे ढूँढ़ता हार जाता तब उससे पूछता तो आंखे बंद समाधि सी लगाने का बहाना कर वह कहता तुम्हारा जानवर अभी जिंदा है जैसा जैसा मैं कहता हूँ करो और जिस दिशा में बताई जाओ तो जानवर मिल जायेगा।
यह कहकर वह उसे रास्ता बताता और उस गाँव वाले को अपना जानवर मिल जाता। यह चमत्कार उसने इतनी बार किया कि लोग उसे पहुँचा हुआ महात्मा समझने लगे। उन्होंने उनके लिये कुटिया बनवाई सत्संग भवन बनवाया और मंदिर का जीणोद्वार कर दिया। लेकिन चारों डाकू अपनी आदतों के गुलाम थे रात को चुपचाप गाँव वालों की बत्तख मुर्गी आदि चुराकर खा जाते थे।
गाँव वाले प्रतिदिन श्र(ापूर्वक फल-फूल, तकिया आदि उपहार उनके लिये लाते रहते जो कुछ भी वे डाकू मांगते गाँव वाले तुरंत हाजिर कर देते थे।
एक दिन गुरु साधु बोला, जबसे हम जेल से भागे है कोई भी दावत नही खाई है तुम लोगों का क्या ख्याल है? यह सुनते ही सबकी आंखों में चमक आ गई तो वह बोला लेेकिन तब तक रुकना पड़ेगा जब गाँव वाले मूर्ति की प्रतिष्ठा कर विधिवत मेरे हाथ में मंदिर सौंप देंगे।
जिस दिन मूर्ति की प्रतिष्ठा थी पूरा गाँव मंदिर में एकत्रित हो गया। गुरु ने कहा, मैने ध्यान लगाया था मेरी स्वर्गीय महान आत्माओं से बात हुई थी महामारी फैलने वाली है। प्रेतात्माऐं का प्रवेश होगा। ये प्रेतात्माऐं विनाशत्माऐं होगी इनका मुकाबला कोई नहीं कर पायेगा। तुम लोग चूहे बिल्ली की तरह असहाय मौत मरोगे। मैंने मैंने महान आत्माओं से बातचीत की है कि गाँव वालों की सहायता करें और आने वाले दुर्दिनों से तुम्हारी रक्षा करेें।
गाँव वाले यह सुनकर घबड़ा गये। वे उन साधुओं के पैरों पर गिर गये कि उन्हें बचायें। गुरु बोला इस आगे वाले दुर्भाग्य से बचने का उपाय हो सकता है अगर प्रेतात्माऐं और उनके साथियों की दावत का इंतजाम किया जायेगा। जब वे अंदर भोजन करने में व्यस्त होंगे तब उन्हें निष्क्रय कर मंदिर को चारों ओर से पवित्र जल व धागे से बांध दूंगा। दस बोतल शराब दो सूअर के सिर दस बत्तख दस मुर्गे की बलि चढ़ानी पड़ेगी। कढ़ी, चावल, फल, सब्जी की भंेट चढ़ानी होगी। केले के पत्तों का मंडप बनाकर गुलाब अर्क से छिड़काव करना होगा। खाने की खुशबू से वे मंदिर के अंदर प्रवेश कर जायेंगे तब वे हमारी मर्जी पर होंगे।
यह सुनकर गाँव वालों में कुद जान आई उन्होंने इंतजाम करने का वायदा किया। भविष्यवाणी वाले दिन सब गाँव वाले प्रेतात्माओं के लिये उपहारों से लदे फंदे मंदिर पहुँचे। गुरु ने गंभीर वाणी से कहना प्रारम्भ किया, मित्रों आज का दिन गाँव में प्लेग फैलने का दिन है। मैं और मेरे शिष्य इस मंदिर को पवित्र धागे से बांध देंगे। तीन दिन तक अंदर हम उन आत्माओं को प्रसन्न करने का प्रयत्न करेंगे। तुम सब लोग अपने घरों में जाओ। अंदर से बंद कर ईश्वर की प्रार्थना करो कि संकट का समय टल जाय। जब तक हम धागे को हटायें नहीं कोई भी उसकी सीमा में प्रवेश करने की हिम्मत न करें क्योंकि ये आत्माऐं शक्तिशाली हैं जो भी इसमें अंदर जायेगा वह पागल हो जायेगा। इसलिये ध्यान रखना और हमारी सफलता की कामना करना।
अपने साथियों की सहायता से गुरु ने मंदिर को चारों ओर से पवित्र धागे से बांधा और आशीर्वाद देकर गाँव वालों को विदा किया। गुरु चेलों के साथ अंदर संत्संग भवन में गया और जोर जोर से हो हो करने लगा। खाली भवन में उनकी हो हो गूँज कर ऐसे लग रही थी कि हजारों लोग चिल्ला रहे हो। गाँव वालों को विश्वास हो गया कि प्रेतात्माओं को भोजन की सुगंध आ गई है और वे भोजन करने आ गई है। अपने कान बंद कर वे तेजी से घरों की ओर भाग गये और अंदर बंद करके बैठ गये।
जब साधुओं की विश्वास हो गया कि वे अकेले रह गये हैं तो उन्होंने शराब पीना और खाना प्रारम्भ किया। जैसे जैसे शराब गले के नीचे चली उन्हें रंग चढ़ना प्रारम्भ हुआ कोई चिल्लाने लगा कोई गाने लगा। एक ने उठकर नाचना प्रारम्भ कर दिया। एक ने जोर जोर से अपने पुराने पापों का बखान प्रारम्भ किया और जोर जोर से हंसने लगे कि किस प्रकारसरलता से गाँव वालों केा वेवकूफ बनाया है।
नाई स्वरूप कुछ दिन पहले गाँव से दूर में अपने रिश्तेदार से मिलने गया हुआ था। उसे साधुओं की भविश्यवाणी आदि के विषय में ज्ञात नहीं था। उसी रात वह वापस लौट रहा था कि रास्ते में मंदिर पड़ा। मंदिर का बगीचा पार करने पर उसके घर का रास्ता छोटा पड़ता था। अनजाने में ही धागे को पारकर वह मंदिर के पास से गुजरा तो अंदर से आने वाले शोर केा सुनकर वह ठिठक गया। अंदर से शराबियों की बातें और हंसना सुनकर वह सन्नाटे में आ गया। साधुओं की कुटियाएँ देखी तो वे खाली थी। उसने संत्संग भवन में झिरी से झांका। चारों साधुओं के चोगे एक तरफ पड़े थे और वे खाना खाने पीने में लगे हुए मस्त हो रहे थे।
पहले तो वह वेवकूफों की तरह खड़ा रहा कि क्या करना चाहिए। कोई हथियार उसके पास था नहीं। अकेले चारों से लड़ना वेवकूफी होगी। उसने पूरे गाँव को जमाने का निश्चय किया। दबे पांव वह जल्दी से गाँव की ओर भाग लिया। गाँव में पहुँच कर यह देख कर हैरान रह गया कि गाँव का हर दरवाजा बंद है यहाँ तक कि उसका अपना घर भी और हर दरवाजे के पीछे से भजन गीत आदि की आवाज आ रही है। उसकी कुछ समझ नहीं आया तो वह जोर से बोला, हो! हो! इस सबका क्या अर्थ है? तुम लोग ऐसे क्यों प्रार्थना कर रहे हो? पता है जिन चारों साधुओं को हम इतने दिन से खिला पिला रहे थे वे सब मंदिर में नाच गा रहे हैं शराब पी रहे हैं। आओ चलो उन्हें पकड़कर पुलिस के हवाले कर दे वे लोग जेल से भागे डाकू है।
पहले तो नाई की आवाज सुनकर गाँव वाले समझे कि प्रेतात्माएँ बाहर निकल आई है और अब हमें खाने आई है लेकिन ध्यान से सुनने पर उन्होंने नाई की आवाज पहचान ली और समझ गये कि वह पवित्र धागे की हद पार करके मंदिर के पास से आ रहा है। आवश्य अब पागल हो गया है। उसके पिता ने दरवाजा खोला और जल्दी से पकड़कर उसे अंदर बंद करने लगे वह चिल्ला कर बोला, मैं पागल नहीं हूँ बिलकुल ठीक हूँ जिन्हें तुम साधु समझ रहे हो वे डाकू है मैंने झिरी से झांककर देखा है अगर विश्वास नही है तो मेरे साथ चल कर देख लो।
लेकिन किसी ने भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया ज्यों ज्यों उसकी आवाज ऊँची होती गई उन्हें विश्वास होता गया कि वह पागल हो गया है और उसे अंदर बंद कर दिया। नाई स्वरूप का दिल बैठने लगा कि ये तो उसे पागल समझ रहे हैं सत्य को समझ ही नहीं रहे है।
नाई स्वरूप समझ गया कि गाँव वालों को ऐसे नहीं समझाया जा सकेगा। मन ही मन वह कोई उपाय सोचने लगा। सुबह वह उठा और ऐसे व्यवहार करने लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। घरवाले से हंस हंस कर बात कर रहा था। गाँव वाले चारों ओर घिर आये और उसकी पीठ थपथपा कर बोले कि भगवान का लाख लाख शुक्र है कि तुम ठीक हो गये नहीं तो हम समझे थे कि तुम पागल हो गये हो।
नाई स्वरूप अब इस इंतजार में था कि किस प्रकार से उन साधुओं की पोल सबके सामने खोले और हरदम उन पर नजर रखने लगा। एक दिन उसने एक चेले को गाँव के एक खेतिहर की गाय को ले जाते देखा। उसे उसने बाग के पीछे एक गड्डे में ले जाकर बांध दिया। तुरंत चतुर नाई के दिमाग में सारा खेल समझ में आ गया। उसने उस चरवाहे को जाकर बताया और कहा कि वह गुरु महाराज से जाकर पूछे वे ही बतायेंगे पहले तो चरवाहा स्वरूपा नाई को शक की निगाह से देखता रहा कि कहीं पागलपन का असर तो नहीं है लेकिन फिर अपनी गाय को देखा और गुरु महाराज के पास जाकर गाय के विषय में पूछा तो मंत्र आदि पढ़ने का नाटक कर गुरु महाराज ने वहीं पर गाय का बंधा होना बताया तो चरवाहे को भी गुरु महाराज पर शक हो गया।
अब स्वरूपा के साथ वह चरवाहा और दो तीन गाँव के नवयुवक भी हो गये क्योंकि उन्हें भी साधुओं पर कुछ कुछ शक था। कई बार मुर्गी बत्तख के पंख मंदिर के पास देखे थे। एक बार छोटे चूजे पकड़ते देखा भी था।
स्वरूपा नाई और चरवाहे ने पुलिस के सिपाहियों के पकड़े पहने और डंडा घुमाने अपने साथ के युवकों के घर में घुसे। उधर वे युवक मंदिर की हद के पास जहाँ दो चेले झाडू लगा रहे थे कहने लगे, आज गाँव में पुलिस घूम रही है। कुछ महिने पहले चार डाकू जेल से भाग गये थे पुलिस वालों को खबर लगी है कि वे इधर ही की तरफ आये है, यहाँ तो सब गाँव वाले ही है पता नहीं।
उन चेलों का चेहरा वे ध्यान से देख रहे थे। चेलों का चेहरा फक हो गया तुरंत ही वे मंदिर के अंदर चले गये। उधर नाई स्वरूपा और उसकस साथी गाँव प्रधान को अपनी योजना समझा कर ले आये थे और कहा था यदि उसकी बात गलत निकले तो उन्हें पागल समझ ले। साथ में गाँव के अन्य व्यक्ति भी थे। दोनों मंदिर के पास उपस्थित युवकों ने बताया कि उनकी बात सुनकर चेले अंदर चले गये है। अब मंदिर को चारों ओर से घेरकर सब दूर दूर पर छिपकर बैठ गये कुछ ही देर में चारों साधु मंदिर के पिछवाड़े से छिपते छिपते भागने के लिये निकले। सब लोग उनके पीछे लग गये। कुछ आगे चलने पर वे एक गुफा में गये वहाँ से उन्होंने गाँव वालों से धोखाधड़ी कर करके एकत्रित धन उठाया और गाँववालों का वेश बना कर बाहर निकले ही थे कि गाँववालों ने घेर लिया। अब साधु घबड़ा गये। नाई स्वरूपा और उसके साथ ने डंडा खटखटाते हुए उन्हें गरेबां पकड़ा और कहा, क्यों बच्चू बहुत मना ली मोज। तो साधु थरथर कांपने लगे। अब गाँववालों को पूरा विश्वास हो गया कि वे डाकू है सब उन्हें पीटने लगे। गाँव प्रधान ने किसी तरह से उन्हें बचाया और थाने पहुँचा दिया यहाँ नाई स्वरूपा को और अन्य युवकों को घोषित इनाम के रुपये मिले।
डाॅ॰ शशि गोयल