Monday, 19 August 2024

magar ki khal sahas katha

 साहस कथा 

मगर की खाल


बलदेव अभी लड़का ही था और उसका काम था, खेतों में घुस आये साही और सूअरों को भगा देना। कभी कभी बाघ, चीता बकरियों की फिराक में गाँव में आ जाते तो बंदूक दाग कर भगा देना। यद्यपि बलदेव की राइफल पुरानी पड़ गई थी लेकिन तेल डालकर वह उसे चमकाये रखता था, गोलियाँ मंहगी थीं खर्च भी देखभाल कर ही करता था। बंदूक वाले गाँव में दो चार ही थे और गांव वाले समय समय पर खेतों की रक्षा के लिये उन्हें बुलाते रहते थे।

एक दिन बलदेव नदी के उथले जल में बत्तखों को देख रहा था। बत्तखों के सिर पर मोर का सा ताज था, ‘वाह! क्या राजा के से मुकुट हैं, एकाएक बत्तखों के बीच से एक थूंथनी प्रगट हुई’ ओह! छोटा-सा मगर आ गया। ’बलदेव ने सोचा।

लेकिन जब वह ऊपर पूरा आया तो वह छोटा-मोटा मगर नही था एक विशालकाय मगर  था। मगर बत्तखों को परेशान नहीं करता इसलिये बत्तखें आराम से तैरती रहीं, लेकिन इस मगर ने अपना विशाल मुँह खोला, एक बत्तख को लपका और पानी में डुबकी लगा गया। सब बत्तखें हड़बड़ा कर भाग खड़ी हुईं। मगर की लंबाई दो भैसों के बराबर थी। यद्यपि नदी में मगर थे पर इतना बड़ा मगर गाँव वालों ने नही देखा था।

बलदेव ने दुबारा मगर देखने की बहुत कोशिश की लेकिन फिर दिखाई नहीं दिया। काश वह उसके रहने का स्थान देख पाता।एक दिन बलदेव ने गाँव वालों की चीख-पुकार सुनी। कुछ अघटित घट रहा था। उस चीख पुकार में ‘बलदेव बलदेव’ की आवाजें भी शामिल थीं। बलदेव दौड़कर पहुँचा, देखा मगर ने एक गाय पकड़ रखी थी और उसे पानी में घसीट रहा था।

गाय अनाथ हरखू की थी और उसे बहुत प्यारी थी। उसकी रोटी का एकमात्र सहारा थीं। गाँववाले पत्थर छड़ी टहनी जो हाथ में था उसी से मगर को मार रहे थे। कई आदमी गाय की पूंछ पकड़ पीछे खींच रहे थे। और कुछ हरखू को पकड़ रहे थे जो नंगे हाथों ही मगर को मारने दौड़ रहा था।

बलदेव को निशाना नही मिल पा रहा था उसने रास्ता छोड़ने को कह गोली दागी पर मगर पर उसका कोई असर नहीं हुआ। उधर गाय हार गई और मगर शिकार के साथ पानी में समा गया। ऐसे तो सारे गाँव वाले भी उसके पेट में समा सकते हैं। सबके दिमाग में यही था।

हरखू सिसक रहा था। बलदेव ने निश्चय कर लिया कि वह मगर को मार कर ही रहेगा। बलदेव मगर को जगह जगह ढूँढ़ता और मगर बलदेव को। वे एक दूसरे के पक्के दुश्मन बन चुके थे।

एक दिन बलदेव ने करीब करीब उसे घेर ही लिया था। नदी में आखें और नाक निकाले लेटा हुआ था। पास ही लकड़ी का लठ्ठा तैर रहा था जब तक बलदेव की नजर उस पर पड़ी तब तक मगर की भी नजर उस पर पड़ चुकी थी और नजर पड़ते ही पहचान उभरी  और वह डुबकी लगा गया। बलदेव समझ गया मगर उसे पहचानता भी है और उसका मकसद भी पहचानता है। लगता है मगर भी उसे पकड़ने की फिराक में है। बलदेव और मगर के बीच यु( ठन गया था और जीत केवल मृत्यु ही बता सकती थी। बलदेव अब उसकी हर हरकत पर नजर रखने लगा। कहाँ पथरीली नदी के हिस्से में से निकल कर कहाँ चट्टानों पर बैठता है। नदी का निचला हिस्सा बहुत ठंडे पानी का था वहॉं मगर कम ही जाना पसंद करते थे लेकिन वह मगर वहीं रहता था।

बलदेव के घर से वह स्थान कई कोस था। जगह जगह निरीक्षण के बाद बलदेव ने निश्चय किय कि सबसे अच्छी जगह मगर के शिकार के लिये मटियाला किनारा है। नरम मिट्टी में उसके घिसटने के निशान बहुत देखे थे और एक दुर्गन्ध उस स्थान से आती थी। वह मगर का खाना सुरक्षित रखने का स्थान था। बलदेव प्रतिदिन वहाँ उसके इंतजार में बैठने लगा। कई दिन बलदेव ने उसे देखा लेकिन या तो बहुत दूर होता था या उसे देखते ही सरक जाता। एक दिन वह राक्षस ठीक बलदेव के छिपने के स्थान के नीचे से निकला। वहाँ से वह निशाना भी आराम से ले सकता था।

बैंग बंदूक की गोली का धमाका हुआ। चिड़ियाएँ डर कर उड़ चलीं। मगर घिसट कर नदी की तरफ चला ,ओह !   मरा हुआ मगर डूब जाता है यह क्या हुआ अब शिकार हाथ नही लगेगा। वह उसे रखना चाहता था। अब तक का उसका सबसे बड़ा शिकार होता। बलदेव जल्दी जल्दी नीचे उतरने लगा जिससे वह मगर को पानी में जाने से रोक सके लेकिन उसे पता नही था कि वह उसे कैसे रोकेगा?

मगर के पास वह जा नही सकता था क्योंकि उसके पास पहुॅंचना मौत के मुँह में पहुँचने के समान था , साँप की तरह वह अपना शरीर तोड़ मरोड़ रहा था, उसकी पूंछ की मार बहुत तगड़ी होती है। मगर पानी तक पहुँच गया। कुछ देर स्थिर रहा फिर पानी में डूब गया। एक रक्त की रेखा पानी में रह गई।

बलदेव को बड़ा क्षोभ हुआ। शिकार हाथ से निकल गया। उसने धोती उतारकर हाथ में ली और पानी में कूद गया। शायद उसे पकड़ कर घसीट कर ला सके। पानी के अंदर मगर उल्टा पड़ा था। जैसे मरी हुई मछली होती है। धोती का फंदा बनाकर उसने मगर की पूंछ में डाला। उसके छूने से मगर में हरकत हुई लेकिन बलदेव ने सोचा अभी शरीर गर्म है हरकत हो सकती है। वह सांस लेने के लिये ऊपर आया। एक मिनट बाद फिर नीचे गया। जैसे ही उसे छुआ उसने झटका लिया और पलट गया, ऊफ! वह मरा नहीं था।

बलदेव सब वहीं छोड़ ऊपर की तरफ बढ़ा लेकिन मगर और तेजी से यह देखने बढ़ा कि उसे किसने छुआ। यद्यपि वह अर्द्ध चैतन्य था लेकिन गति बलदेव से अधिक तेज थी, दो उछाल मारकर ही वह बलदेव के पास आ गया और उसका एक पैर पकड़ लिया। यद्यपि बलदेव ने बहुत हाथ पैर मारे लेकिन कुछ ही देर में उसकी सांसों में पानी भर गया और वह बेहोश हो गया।

अगर मगर स्वयं पूरी तरह होश में होता तो यह बलदेव का अंतिम दिन होता। जैसे कि अन्य मगर शिकार पानी में खीच ले जाते हैं , वह बलदेव को पानी में नहीं ले गया बल्कि पानी में बने अपने खाना रखने के कमरे में धकेल दिया, क्योंकि बलदेव को जब होश आया उसका मुँह कीचड़ में था और वह एक ढलान पर पड़ा हुआ था। रोशनी की किरण उस पर एक दरार मेें से आ रही थी और हवा के झोंके आ रहे थे। तेज दर्द की टीसें उठ रही थी। उसके चेहरे के नीचे ही खुला स्थान था जहाँ से वह नदी का तल बखूबी देख सकता था। पहले बालू पर घिसटने के गहरे निशान थे फिर कुछ ही दूर पर मगर की पीठ दिखाई दी। वह खोह के बाहर ही आराम कर रहा था। बलदेव ने चारों ओर देखा वहाँ उसके खाने का सामान रखा  था। उसे शीघ्र ही गाय के सींग भी दिखाई दे गये।

एक भय की लकीर उसे ऊपर से नीचे तक सिहरा गई। जीवन का मोह उसमें एक नई आशा लेकर आया। पैर उसका फट तो गया था पर टूटा नही था सारा लहूलुहान हो रहा था। विचार कौंधा ‘यह मिट्टी है। लक्कड़बग्घे मगर का खाना खोद कर निकाल लेते हैं वह भी क्या निकल सकता है?’

बड़े जानवर के कंधे की हड्डी पड़ी थी। बलदेव ने ध्ीारे धीरे मिट्टी ऊपर से खोदनी शुरू की। अपने पीछे उसनेे अन्य खाने का सामान रख दिया था जिससे अगर मगर खाने आये तो पहले अन्य सामान ले।

उसका काम ठीक ठीक आगे बढ़ रहा था। मात्र एक पतली सी पर्त रह गई थी । लेकिन पर्त सूर्य की गरमी से सूख गई थी। डर था आवाज से मगर ऊपर से न आ जाए। परन्तु फिर भी उसने पागलों की तरह खोदना शुरू किया। 

उसे पेड़ वगैरह दिखाई देने लगे। वह सिर निकाल पाता कि उसे भारी शरीर के मांद में घुसने का एहसास हुआ। वह भय से चीख उठा और तेजी से ऊपर निकला कैसे वह नहीं जानता। कुछ देर में मिट्टी से सना वह जमीन पर खड़ा था लड़खड़ाता वह घर पहुँचा मरहम पट्टी करवा वापस आया और मगर को तार से गोद गोद कर मार डाला। उसे खोह में से निकाल कर घर लाया। उस विशाल मगर की खाल उसने दीवार पर टांग दी जिसे देख देख कर उसके बच्चे आज भी खुश होते हैं।


Saturday, 17 August 2024

jute vala billa

 वास्तविकता यह थी कि वे जौ के खेत और मवेषीखाना एक राक्षस के थे जो सामने पहाड़ी पर एक महल में रहता था लेकिन पहरेदार और गड़रियों को आज्ञा मानने की आदत थी तो वे चुपचाप मान गये। अब बिल्ला दौड़ा दौड़ा राक्षस के महल में गया। बाहर से आवाज लगाई‘ हैलो यहां एक बिल्ला महल के मालिक से मिलना चाहता है।

महल का द्वार फौरन खुला राक्षस बोला,‘ ये तुम्हें जूते कहां से मिले?’

‘ ये जूते ,‘ बिल्ले ने कहा,ये जूते तो मेरे मालिक विलोवन्डर ने दिये हैं ।’

एक जूते कपड़े पहने बिल्ले को देखकर राक्षस को आष्चर्य हुआ था उसने बिल्ले को महल में आने दिया। 

राक्षस ने एक कमरे का ताला खोला। बिल्ले ने देखा कमरा सुन्दर सुन्दर चीजों से भरा है। बिल्ला पूंछ समेट कर आग के पास बैठ गया।

‘ मैंने सुना है ,‘बिल्ला बोला,- कि तुममें बहुत षक्ति है और अपने आपको किसी भी जानवर में बदल लेते हो ।

‘हां मैं बदल लेता हूं ।’ राक्षस ने लापरवाही से कहा ।

‘अब देखूं तो जानूं’ बिल्ले ने कहा

‘अच्छा तब मानोगे ’ राक्षस गरजा साथ ही एक बाघ के रूप में बदल गया।

बिल्ला बाघ को देखकर डरा और खिड़की से कूद कर एक पेड़ पर जा बैठा।

राक्षस ठठा कर हंसा और फिर अपने राक्षस के वेष में आ गया ।

बिल्ला फिर अंदर आया और बोला,‘ तुम इतने बड़े हो इसलिये ऐसे बड़े बाध के रूप में आने में तुम्हें कोई तकलीफ नहीं हुई होगी । हां किसी चिड़िया या चुहे के रूप में आने में बहुत मुष्किल होगा तुम्हारे लिये क्यों है न ।?

‘ तो देखो ’राक्षस चिल्लाया साथ ही एक छोटे से चुहे के रूप में बदल गया । उसी क्षण की चालाक बिल्ला प्रतीक्षा कर रहा था। एक ही कूद में वह चूहे पर झपटा और निगल गया ।

उधर राजा , उसकी लड़की और जैक गाड़ी में उसी सड़क से आ रहे थे। जौ के इतने बढ़िया खेत को देखकर राजा ने पूछा‘ ये खेत किसके हैं ।’

डयूक ऑफ विलोवन्डर के ’दोनों पहरेदार एक स्वर में बोले।

मोटे मोटे जानवरों को देखकर उनके पहरेदार गडरियों ने भी यही कहा।

राजा की गाड़ी महल पर पहुंची बिल्ला बाहर निकल आया,‘ डयूक आफ विलोवन्डर के महल पर आपका स्वागत है ,’बिल्ला बोला ,आइये अंदर आइये ।’

अंदर राक्षस द्वारा सजाया जादुई भोजन तैयार था। इतना स्वादिष्ट भोजन महल आदि देख कर राजा बोला ,‘ नहीं जानता तुम्हारा आगे क्या ख्याल है लेकिन अपनी पुत्री का हाथ तुम्हारे हाथ में देकर मुझे खुषी होगी । जैक भी राजकुमारी को देखकर उसके प्रेम में पड़ गया था ।

राजकुमारी भी यही चाहती थी इसलिये निष्चित किया गया कि दूसरे दिन ही जैक की षादी राजकुमारी से की जायेगी। जैसे ही वे लोग गये जैक बिल्ले की ओर मुड़ा और बोला ‘वफादार दोस्त मैं सोच भी नहीं सकता कि मैं तुम्हे मारकर फर का कोट बना रहा था जब राजकुमारी से मेरी षादी हो जायेगी तो तुम्हें उच्च पदवी प्रदान करूंगा।

‘ नहीं बिल्ला बोला ,‘अब तुम मुझे मार दो ,चांदी की छुरी लेकर मेरा गला काट दो ं-

‘नहीं यह मैं कभी नहीं कर सकता।’ जैक चिल्लाया 

‘नहीं यह करके मेरे ऊपर भारी एहसान करोगे।’ बिल्ला गिड़गिड़ाया।

अंत में जैक राजी हो गया जैसे ही चांदी की छुरी से बिल्ले का गला छुआ जोर जोर से बादल गड़गड़ाने लगे ओर बादलों में बिल्ला गायब हो गया उसकी जगह एक बहुत संुदर राजकुमार खड़ा था।

‘मेरे को तुमने राक्षस के मायाजाल से से मुक्त किया है’ राजकुमार ने कहा,,‘ ये खेत ये मवेषीखाने ये महल सब मेरे हैं  लेकिन जैक मैं ये सब तुम्हें खुषी से देता हूं मेरी इससे कहीं ज्यादा भूमि और महल समुद्र के पार है मैं वहां जा रहा हूु ।’ यह कहकर राजकुमार छोटे छोटे जूते ले सड़क पर चल दिया। कुछ देर तक वह दिखाई दिया फिर उसका षरीर धुधलाता गया और गायब हो गया ।


Tuesday, 13 August 2024

kath ka putla 4

 जिमी ने आश्चर्य से पिनोकियो की ओर देखा। अब पिनोकियो वह पिनोकियो नहीं था। अब वह कमजोर और मूर्ख काठ के पुतले की जगह साहसी और निस्वार्थ पिनोकियो था। जिमी ने कहा -मगर भाई समुद्र तो यहाँ से बहुत दूर है।’ पिनोकियो ने कहा मैं इसकी परवाह नही करता अपने पिताजी की जान बचाने के लिये मुझे कोई जगह दूर नही मालूम होती। इतने में वहाँ नीलम परी चील के रूप में प्रकट हुई और बोली चिन्ता मत करो मै तुम्हें अपनी पीठ पर ले जाकर वहाँ पहुँचा दूंगी। इसके बाद उसने पिनोकियो को अपनी पीठ पर चढ़ा लिया। जिमी भी चील पर सवार हो समुद्र की ओर चला। रात भर उड़ने के बाद चील एक ऊँचे चट्टान पर उतरी। उसी के नीचे विशाल समुद्र गरज रहा था। चील ने पिनोकियो से कहा मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के यहाँ ले जा सकती हूँ। क्या तुम ऐसी खतरनाक यात्रा करने को तैयार हो? पिनोकियो ने कहा हाँ मैं तैयार हूँ। आप जो मुझे अपनी पीठपर चढ़ाकर यहाँ तक ले आयीं उसके लिये आपको धन्यवाद है। अच्छा गुडवाई। चील ने भी जबाव में गुडवाई कहा और चली गयी। पर पिनोकियो और जिमी दोनों में किसी को भी मालूम नही हुआ कि वह चील नीलम परी थी। 

चील के चले जाने पर पिनोकियो ने अपनी गधे की दुम में एक बड़ा पत्थर बाँधा जिससे वह समुद्र की तह में अपना लंगर डाल सके। फिर दोनों उस चट्टान से कूद पड़े। पत्थर के भारी होने से पिनोकियो बहुत जल्द समुद्र के नीचे चला गया। उससे चिपका छोटा जिमी भी था। दोनों एक दूसरे को पकड़े समुद्र की तह में पहुँचे। पहले तो वहाँ बहुत अंधेरा मालूम हुआ। 

धीरे धीरे हरी रोशनी दिखाई देने लगी। फिर दोनों ने देखा उनके सिरों पर पेड़ो की डालियों की तरह समुद्री पौघे छाये हुए हैं। चारों ओर रंग बिरंगी चमकती मछलियाँ तैर रही थी। पर पिनोकियो को उनसे कुछ मतलब नही था। वह तो दूसरे ही इरादे में वहाँ गया था। उसने गुफाओं और कन्दराओं में उस व्हेल मछली की तलाश की। पर उसकी दुम में जो पत्थर बंध था उससे वह बहुत धीरे धीरे चल पाता था। उसने अधीर होकर कहा ,‘जिमी बताओ वह जगह कहाँ है जहाँ वह व्हेल रहती है।’ जिमी ने कहा ,‘मुझे मालूम नहीं मगर हम यहाँ के लोगों से पूछकर उसका पता लगा लेगें।’ यह कहकर उसने एक सीप को धीरे से ठोकर लगाओ। सीप खुल गयी और मोती निकल आया। जिमी ने कहा ,‘भाई मोती मुझे क्षमा करना तुम्हें मालूम है व्हेल कहाँ रहती है?’ यह सुनते ही मोती डर के मारे बिना कुछ कहे सीप में समा गया। इसी तरह दोनों ने वहाँ के स्कूली बच्चों मैदान में चरते घोड़ो और दूसरे जीव जन्तुओं से व्हेल का पता पूछा मगर किसी ने भी डर के मारे बतलाया नही। फिर भी दोनों हताश नहीं हुए और व्हेल की खोज में आगे बढ़ते गये। पर कहीं भी उस खूखांर जानवर का पता नहीं मिला। पिनोकियो ने कुछ चिन्तित होकर कहा समय बीतता चला जाता है। अब तक हम लोग उसका पता नही लगा सके। मेरे पिता भूखों मर रहे होगें। वह अपने पिता को जोर जोर से पुकारने लगा। पर उसके जबाव में कही से भी आवाज नही आयी। जिमी ने कहा,‘ पिनोकियो चलो घर चलें हमें यहाँ उस व्हेल का पता नही लग सकता। शायद हम लोग भूल से दूसरे समुद्र में चले आये हैं।’ पिनोकियो ने कहा,‘ नहीं जिमी चाहे जो हो अब मैं पीछे पैर नहीं रख सकता।’ 

पास ही व्हेल मछली खुर्राटे भर रही थी। कभी कभी उसकी पीठ पानी की सतह पर दिखाई पड़ जाती जिससे टापू होने का धोखा होता था। उसी के पेट में बूढ़ा मिस्त्री था। उसकी पालतू बिल्ली और लाल मछली भी उसके साथ थी। मिस्त्री ने व्हेल के पेट में एक छोटा सा मकान, बक्सों के टुकड़े से बना लिया था। खाने पीने के बर्तन भी उसने बना लिये थे, मगर खाने का सामान बहुत कम था। यहाँ तक कि वह मरने मरने को हो गया था। हर रोज वह व्हेल के पेट में बंसी लगाकर मछलिया मारा करता पर जब वह सो जाती थी तब उसके पेट में एक भी मछली नही जाती थी। जिपेट्टो ने बिल्ली से कहा- हम लोग यहाँ भूखों मर रहे हैं और पिनोकियो न जाने कहाँ क्या कर रहा होगा। जब बूढ़ा मिस्त्री बाहर मछली मारने चला गया तब बिल्ली फिगारो से रहा नही गया, वह भूख से बेचैन हो लाल मछली पर झपटी। जिपेट्टो इसे देख लिया। उसने बिल्ली को डाँटा और कहा कि इसीलिए तुमको इतने दिन से पाल रखा था कि तुम अपने साथी को ही हड़पने लगो। खबरदार ऐसा मत करना।’ इतने में व्हेल मछली के पेट में एक बक्स आया। जिपेट्टो ने समझा उसमें खाने की चीजें होंगी पर खोलने पर उसमें एक भोजन बनाने की किताब मिली। उसके पन्ने खोलकर जिपेट्टो पढ़ने लगा। एक पन्ने पर मछली बनाने की विधि लिखी थी। पढ़ते ही उसके मुँह से राल टपक पड़ी वह अपनी पालतू लाल मछली की ओर बढ़ा और उसे कड़ाही में तलने जा ही रहा था कि उसे ख्याल आया कि मैं क्या कर रहा हूँ। उसने मछली से माफी माँगी और कहा कि हम दोनों इतने दिनों तक साथ रहे अगर भूखों मरना ही है तो दोनों एक साथ मरेंगे। बड़ा करूणाजनक दृश्य था। सबने समझा कि आखिरी वक्त आ गया। 


Jute vala Billa

 जूते वाला बिल्ला

कहानी एलिजाबेथ ऐबेट प्रस्तुति डा॰ षषि गोयल

बहुत दिन हुए एक आदमी के तीन पुत्र थे ,मरते समय उसने बड़े पुत्र को घर दूसरे पुत्र को खेत दिये लेकिन सबसे छोटे पुत्र को अपना पालतू बिल्ला दे गया । सबसे छोटा पुत्र जैक यह समझ न सका कि बिल्ले का क्या करे ? ‘इसे मार दूं’ उसने कहा,‘ फिर उसके फर का कोट बनालूं। लेकिन उसका फर मेरे को पूरा नहीं पड़ेगा।’

‘मालिक मेरे को मत मारो’ बिल्ले ने जैक से कहा,‘ मेरे को एक जैकेट एवं एक जोड़ी जूते देदो ,आपको खास नुकसान नहीं होगा।’ जैक जानता था कि कोई खास खर्च नहीं आयेगा इस लिये उसने बिल्ले को एक जैकेट,एक जोड़ी जूते एवं एक हैट दे दिया। बिल्ले ने इन्हें पहना और एक खाली टोकरी उठाई और रास्ते पर निकल पड़ा ।

 बिल्ले ने बहुत दूर जाकर एक घर देखा ,उसके पिछवाड़े हरी सलाद की पत्तियां उगी हुई थीं। उसने द्वार खटखटाया, मालकिन ने झांका तो बिल्ला बोला,‘ मेरे मालिक ने जो डयूक आफ विलोवन्डर हैं वे सलाद के लिये पत्तियां चाहते हैं, अगर थोड़ी पत्ते दोगी तो वे तुम्हें अच्छा इनाम देंगे।’ मालकिन बहुत खुष हुई उसने बिल्ले को पत्तियां देदीं। बिल्ले ने जल्दी से बोरे में पत्तियां भरी फिर अपने रास्ते निकल पड़ा। एक जगह उसने खरगोष के घर बने देखे ं एक बड़े से घर के पास उसने पत्तियों का बोरा टिका दिया। थोड़ी ही देर में एक पहलवान खरगोष वहां आया । पत्तियों को सूंघकर उन्हें खाने के लिये बोरे में घुस गया । बिल्ले ने बोरे के मुंह को कसकर बंद किया,पीठ पर लादा और चल दिया। चलते चलते वह राजा के महल पर पहुंचा,‘सुनो सुनो ’ बिल्ले ने कहा ,एक बिल्ला राजा से मिलना चाहता है। ’ राजा के पहरेदार ने खिड़की से झांका,एक बिल्ले को  मनुष्यों की पोषाक में देखकर दंग राजा के पास भागा आया,

‘महाराज! महाराज!’ वह चिल्लाया’ एक जुते पहने बिल्ला बारादरी में खड़ा है।’

‘ वाह! क्या दृष्य होगा,’ राजा ने कहा,‘ मुझे सुनकर अच्छा लगा ,बुलाओ उसे ं’पहरेदार बिल्ले को राजा के पास लाया । उसे ऊपर से नीचे तक देखने के बाद राजा ने कहा,‘ वाह क्या मजेदार तमाषा है ,तुम्हारे इस बोरे में क्या है ?’

‘ मोटा सा खरगोष हुजूर ।’ बिल्ला बोला,‘ मेरे मालिक ने यह आपके भोजन के लिये भेजा है’। 

तुम्हारा मालिक कौन है ?’

‘ क्यों वह डयूक ऑफ विलोबंडर हैं ’ बिल्ले ने कहा ।

‘ठीक है ’ राजा ने कहा,‘ किसी दिन वो भी मेरे साथ भोजन पर पधारें ।’

दूसरे दिन बिल्ला दो बत्तख लाया। एक बार फ्रि महल के फाटक पर चिल्लाया’

सुनो सुनो, एक बिल्ला राजा से मिलने आया है।’

पहरेदार राजा के पास दौड़ा दौड़ा गया,‘ महाराज वह बिल्ला आज फिर आया है।’

‘ उसे आने दो ।’ राजा ने कहा ।

पहरेदार बिल्ले को लेकर अंदर आया‘ तुम्हारे बोरे में क्या हाथ पैर चला रहा है।’

‘ दो मोटी मोटी बत्तखें ।’ बिल्ले ने कहा,‘ महाराज के हुजूर में अपने मालिक की ओर से पेष करता हूं ।’

‘ तुम्हारे मालिक से मिलना चाहता हूं । ’ राजा ने कहा,‘ किसी दिन उससे कहो मेरे साथ खाना खाये ।’

बिल्ला दौड़ा दौड़ा घर गया और जैक से बोला ,ः कल राजा इधर से गुजरेंगे ,तुम्हें वैसे ही करना होगा जैसे मैं कहूं, अब तुम जैक नहीं डयूक ऑफ विलोवन्डर हो ।’

दूसरे दिन बिल्ले ने राजा की गाड़ियों की खड़खड़ाहट सुनी तो बोला ,‘ जैक दौड़ कर नदी में कूद जाओ लेकिन कपड़े किसी पत्थर के नीचे छिपा देना।’

जैक बिल्ले के कहे अनुसार कूदा , बिल्ला सड़क के किनारे खड़ा हो गया जैसे ही राजा की बग्धी दिखाई दी जोर से वह चिल्लाने लगा ,‘ बचाओ ! बचाओ !मेरे मालिक डूब रहे हैं ,डयूक आफ विलोवन्डर डूब रहे हैं’

राजा ने गाड़ीवान से कहा,‘ इस बिल्ले को मैं पहले भी देख चुका हूं जाओ और उसके मालिक को बचाओ ।

तब बिल्ले से कहा ,’ मालिक को मेरे पास लाना ’

‘ हाय कैसे ? इस समय उनके पास कपड़े नहीं हैं वे डूबे उससे पहले ही कपड़े डूब गये।’

‘ इसमें क्या परेषानी है?’ राजा ने कहा और एक पहरेदार को महल से कपड़े लाने भेज दिया उतनी देर नदी से निकाला हुआ जैक झाड़ी के पीछे छिपा सर्दी से कांपता रहा। जब बिल्ला कपड़े लाया तब उन्हें जैक ने पहना ।

राजा के भेजे कपड़े पहनकर जैक डयूक सा ही लग उठा वरन् और भी सुंदर। राजा ने जैक को  अपने और अपनी पुत्री के साथ गाड़ी पर ही बैठा लिया। गाड़ीवान ने बिल्ले से अपने साथ बैठने के लिये कहा लेकिन बिल्ला आगे आगे भागते हुए चलता रहा ।

बिल्ला षीघ्र  ही गाड़ी की दृष्टि से ओझल हो गया। जल्दी ही वह एक बहुत बढ़िया और बड़े से जौ के खेत के पास पहुंचा जहां दो व्यक्ति पहरा दे रहे थे ं बिल्ले ने दोनों से कहा,‘ इधर राजा आ रहे हैं अगर वे यह पूछें कि खेत किसके हैं तो कहना‘ ये खेत डयूक ऑफ विलोवन्डर के हैं अगर ऐसा नहीं कहा तो लौट कर मैं तुम्हारे टुकड़े टुकड़े कर दूंगा’

 फिर भागता बिल्ला एक मवेषीखाने के पास पहुंचा । वहां बहुत अच्छे अच्छे भेड़ बकरियां गाय भैंसें थे दो गड़रिये उनकी देखभाल कर रहे थे। बिल्ले ने दोनों गड़रियों से कहा,‘ देखो इधर बहुत जल्दी राजा आने वाले हैं वे पूछेंगे ये किसके जानवर हैं तो तुम लोग कहना डयूक ऑफ विलोवन्डर के हैं अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हारे टुकड़े टुकड़े कर दूंगा ।


Thursday, 8 August 2024

Jheel ka rahasy

 झील का रहस्य

आज चलो पिकनिक मनाने चलते है कल वर्षा हुई है आज भी बादल से छाये हैं कॉफी राहत है मजा रहेगा, अमित ने चारू रमन और रीता की ओर देखकर कहा ‘ हॉं चलो चलते हैं पर नौ तो बज गये ” रीता जबतक नहाई नहीं थी बोली ,‘खाना भी तो लेना पड़ेगा । “ तो क्या हुआ आंटी से पूरियॉ बनवा लेते है। ” रमन तो उत्साह में खड़ा भी हो गया । चारू और रमन मौसी के यहॉ गर्मी की छुट्टियों में आये थे अमित और रीता बराबर के से थे इसलिये यहॉ उनका मन खूब लग जाता था और अधिकतर छुट्टियॉ विताने कभी अमित रीता चले जाते या कभी चारू रमन आजाते थे तेज गर्मी की वजह से वे लोग कही बाहर नहीं निकल रहे थे कैरम आदि खेल खेल कर बोर हो रहे थे। टीवी या वी.सी आर पर पिक्चर देख लेते थे शाम को भी घर से निकलने पर लू के थपेडे़ लगते थे। इसलिये रमन की मम्मी उन्हें बाहर नही जाने देती थी। पहली रात की तेज वर्षा ने मौसम काफी खुशनुमा कर दिया था 

“ लेकिन अधिक दूर कहीं मत जाना कहॉं जाओगे पिकनिक पर?’ रमन की मॉ ने पूरियॉ बनाते कहा,‘ हम नदी किनारे तरबूज खरबूज के खेत ं जायेंगे वहीं बाबा की बगीची में खेलेगें ’रमन ने बैट बॉल लिया। चिप्स आदि के पैकेट रखते रीता बोली,‘ ओफू चाकू तो लेना भूल ही गई खरबूजा काटेंगे किससे ’ रीता ने जेबी चाकू ढूॅंढ कर अपने बैग में रख लिया क्यों कि बडे़ चाकू से मम्मी काम कर रही थी। 

ग्यारह बजे तक सब नदी किनारे पहुॅच गये गर्मी के कारण नदी सूखी पड़ी थी एक रास्ते से बहुत से लोग नदी पार कर रहे थे पानी बस एक फुट वहीं से नदी पार कर खेतों मंे पहुॅचे। ‘चलो अंदर की तरफ घूमने चलते है “ रमन ने कहा।,‘ उधर जंगल का रास्ता है, बगीची चलते है “ अमित ने रोकते कहा । ‘अरे! तो क्या हुआ दिन का समय है कोई जंगल हाल ही तो शुरू नही है। जायेगे लौट आयेगेे चलो चलो ।’ सबने सामान लादा और अंदर की तरफ चल दिये कच्चे आम दिखाई दिये तो आम तोड़े बेल तोड़ कर थेैले में डाले ढेर सारे कदम्ब के फूल तोड़़े जब थक गये तो पैर पसार  कर एक घने पैड़ के नीचे बैठ गये ।

‘अब तो भूख लगी है ’ खाने का सामान निकाल कर जैसे टूट पड़े। करीब दो बजे चुके थे अभी तो समय हैं चलो लेटा जाये ठंडी हवा चल रही हैं’ चारू बहुत थक रही थी। ‘थोड़ा आराम करलोे फिर वापस चलते हैं’ यह कहकर रमन ने चारों ओर देखा लेकिन यह क्या रास्ता तो भूल चुके थे अन्दाज ही नही लग रहा था किधर से आये थे ? उसने पूछा ,‘उधर कदम्ब के पेड़ है न’ पर कहते कहते वह स्वयं ही चारों ओर घूम गया । क्योकि चारो ओर  कदंब के पेड़ नजर आ रहे थे अमित ने कहा ,“ उठो उठो रास्ता देखना पडेगा अधेरा हो जायेगा’ वह घबरा गया। कुछ दूर चलने पर ही चारू कहने लगी, जरा सुस्ता लो चला नही जा रहा है ’यह कहकर एक पत्थर के विशाल खंड से लगकर बैंठ गई, चारों वही बैठ गये। “ ‘जब हम आये थे तब यह शिला तो भिली नहीं थी ’रीता ने इधर उधर देखते कहा, तभी उसे एक व्यक्ति आता दिखाई दिया,‘ चलो उससे पूछते है। रुको अमित का मन शंकित हो उठा क्योकि उस व्यक्ति का चलने का  ढंग संदेह पैदा कर रहा था वह चारों ओर शंकिता सा देखता ,बार बार पीछे मुड़ता देखता तेजी से जा रहा था ’कही कोई रास्ता तो होगा चलो इसके पीछे चलते है रमन उत्साहित हो उठा ‘लेकिन दबे पांव’ कुछ दूर चलने पर उन्होंने देखा एक पुराना सा मकान था वह व्यक्ति उसी के अंदर चला गया लेकिन उसके अंदर जाने से पहले वह पलट कर चारों ओर देखने लगा कोई आ तो नही रहा है । चारों बच्चे ओट से मकान को देखने लगे। कुछ ही देर में एक फ्रेंच दाढ़ी वाला व्यक्ति अंदर घुसा। वह भी  घुसने से पहले बहुत सतर्का था । अब इन चारों को निश्चय हो गया कि अवश्य कुछ गड़बड़ है उन्होंने मकान का चारों ओर से निरीक्षण किया  ंपीछे ही नदी बह रही थी एक फेरी बंधी थी । यहॉ पानी गहरा था पीछे भी दरवाजा था पर वह बंद था तभी दोनों व्यक्ति बाहर जाते दिखाई दिये दरवाजा उढका था चारों एक एक के कर उसमें प्रवेश कर गये। चारू रमन एक कमरे में घुसे ,अमित रीता दूसरे कमरे में पहला खाली था दूसरे में खाने पीने का सामान था तीसरा गैलरी पार करके एक और  कमरा नजर आ रहा था उसके दो रास्ते बंटे थे एक पास ही कमरा उढका था अमित रीता उसमें धुसे और रमन रीता चौथे सामने वाले कमरे में धुसे वहॉ धुसते ही वे मैाचक्का रह गये । नई चमचमाती हुई विशाल मशीन थी उसमें अनेक सयन्त्र लगे थे दो टेप रिकार्ड भी ,‘अरे यह तो एसी मशीन तो मैंने रेडियो स्टेशन पर देखी हैं’ ’  ‘चल हट , रेडियो स्टेशन पर तूने देखी ,’                                             ‘मैं मम्मी के साथ रेडियो स्टेशन कई बार गई मम्मी के भजन प्रसारित होते है न वहॉ से ,’  ‘तो यह इसका यहॉं क्या कर रहे हैं’,तभी एक मजबूत हाथ अमित के कंधे पर पड़ा       ‘क्यों बच्चू यहॉ क्या कर रहे हो’दाढी वाला और दूूसरा व्यक्ति लौट आया था इस बारएक तीसरा मोटा व्यक्ति भी साथ वह गुर्राया‘ये बच्चे अदंर कैसे आये दरवाजा बंद नहीं किया था’ ‘किया था बॉस पर अभी बस किनारे तक ही गया  तब तो  यहॉ कोई नहीं था ’        ’चलो इन्हें बांध कर कमरे में डाल दो सोचेगें इनका क्या किया जाये ’                 ‘बच्चे है ये क्या समझे यह भगा दीजिये ,’ दाढी वाले ने कहा ।                      ‘बच्चे बडे़ आफत केे परकाला होते हैं यदि किसी से भी जिक्र कर दिया तो फॅस जायेगें  मोटेे ने कहा ,‘इन्हैं पीछे नदी में डुबो दे यहीं ठीक रहेगा ,’

अभी तो बांध कर डाल दो 

चलो सन्देश देने क्या समय हो गया है एक व्यक्ति ने रमन और चारु केे हाथ बॉध कर उन्हैं पास वाले कमरे मै धकेल दिया बाकी दोनांे ने उस मशीन को चालू कर समाचार पढने शुरू किये समाचार के बाद कोड शब्दोे में बोला ।

अमित और रीता दरवाजे की और से सारा कंाड देख रहे थे उनका बुरी तरह दिल धड़क रहा था। अमित तैरना जानता था लेकिन रीता नही जानती थी नदी तो पार अवश्य करनी हैं लेकिन रास्ता कहॉ पहॅुचेगा हमें पहले चारु और रमन को बचाना है अमित का दिमाग तेजी से धूम रहा था तभी उसे डोंगी की याद आई 

‘क्यों न , नदी पार जाकर पुलिस में खबर दे दूं ’अमित फुसफुसाया ,‘ पता नहीं कितनी दूर हैं हम तब तक उन्होनें उन्हें डुबो दिया तो रीता सहमी हुई थी ,‘ ऐसा कर तू डोंगी चला लेगी ‘ ‘ मैं’ रीता  सहम गई कभी चलाई नहीं’’ ‘ अच्छा छोड़ तू नदी किनारे इधर दरवाजे की तरफ  देखती छुपी बैठी रहना मैं पुलिस में खबर करता हूॅ चल जल्दी समय कम है वे लोग दबे पॉव बाहर निकले एक बार चप्पू की छपछप सें अमित धबरा गया रीता को भी डर लग रहा था पर दरवाजे की और देखती वह छिप गई ,मुॅह के पर्स खोल उल्टा दिया चाकू निकाल लिया पीछे मुठ्ठी ही पकडे उसने अमित के बंधे हाथ की डोरी पर चाकू धिसना शुरू किया जोर नहीं लगा पा रही थी बार बार चाकू गिर जाता  पर कुछ देर मे  वह रस्सी काटने में सफल हो गई 

अमित ने चारु के बंधन खोले लेकिन अब समस्या कमरे से बाहर निकलने की थी कहीं भी कोई साधन नहीं नजर आ रहा था दरवाजा बाहर से बंद था न कोई मेज न कुर्सी। 

‘धत् तेरे की! अब क्या करें ?’अमित को गुस्सा आ रहा था चारु को रोना आने लगा ।

‘देखी जायेगी जैसे ही कोई दरवाजा खेालेगा उसे पकड कर गिरा दंेगे और भाग चलेंगे  आहट पर ध्यान देना।’ दोनांे दरवाजे से टेक लगाकर बैठ गये दो। घन्टे हो गये कोई भी दरवाजा खेालने नही आया 

  ‘हॅंू सोच रहे हैंे बच्चे हैं भूखे प्यासे ही मार देंगें रमन और रीता पता नही कहॅा हैं किस कमरे में हैं’ अमित ने रमन को सुनाने के लिए परिचित सीटी बजाई लेकिन कहीं कोई जबाब नहीे आया 

कुछ ही देर मे कई आहटें सुनाई दी जैसे कई व्यक्ति आ रहे हों लेकिन सब बगल के कमरे की ओर बढ़ गये कान लगाये वे दम साध आहटें सुनने लगे।  एकाएक कुंाडी उतरने की आवाज सुनाई दी दोनों तैयार हो गये जैसे ही जरा दरवाजा खोला इन्होंने झपाटे से पूरा दरवाजा खोल आने वाले को दबोच लिया,‘ अरे! अरे यह क्या ? ’साथ हो दोनांे मौचक्के रह गये क्यांेकि जिसेे उन्होंने दबोचा था वह अमित था वह पुलिस बुला लाया था दो व्यक्तियों को पकड़ लिया था और मोटे वाले व्यक्ति  ,उनके बॉस के लिये जाल बिछा दिया गया था इन देश के दुश्मनों ने पाकिस्तानियों से मिलकर एक अवैध रेडियो स्टेशन बना लिया था जिससे वे जासूसी कर खबरें कोड शब्दों द्वारा मेजा करते थे। बाद में बॉस भी पकड लिया चारों बच्चों को सरकार की तरफ से सम्मान पत्र ब इनाम मिला। 


Wednesday, 7 August 2024

kath ka putla 3

 पिनोकियो अपने पिता को देखने के लिये बहुत उत्सुक था। उसे इतनी उतावली थी कि जिमी के साथ बाजी लगाकर वह दौड़ता हुआ घर चला। मगर जिमी दौड़ने में तेज था, वह बहुत दूर आगे निकल गया। पिनोकियो बहुत पीछे अकेला पड़ गया। चलते चलते वह गाँव के एक ऐसे मुहल्ले में पहुँचा जिधर भले आदमी आँख उठाकर भी नही देखते थे। वहाँ पक्के बदमाशों का अड्डा था। वहीं उसी लोमड़ी और बिल्ली ने उसे देखा और सोचा कि इससे फिर पैसा कमाना चाहिये। लोमड़ी ने आगे बढ़कर कहा -अरे भाई पिनोकियो कहाँ दौड़े जा रहे हो अच्छे हो न? तुम्हें देखकर बड़ी खुशी हुई। पिनोकियो ने कहा कि मैनें थियेटर छोड़ दिया है। अब अपने घर जा रहा हूँ। फिर मैं स्कूल जाऊँगा और मेहनत से पढूँगा। लोमड़ी ने उसे रोककर कहा- तुम क्या कह रहो हो? भला तुम स्कूल जाने लायक हो तुम बीमार दिखाई पड़ते हो और तुम्हारी बीमारी ऐसी खतरनाक है कि ताज्जुब नहीं कि जल्द मर जाओ। ऐसी खतरनाक बीमारी की बात सुनकर पिनोकियो बहुत घबराया। पूछा अब मुझे क्या करना चाहिये?

लोमड़ी ने कहा घबराओ मत। इस बीमारी से बचने के लिये बहुत सीधा उपाय है। कुछ दिन आनन्दद्वीप जाकर आराम करो। वहाँ हर रोज छुट्टी रहती है। तरह तरह के खेलने के सामान मिलते हैं। वह बच्चों के लिये तो स्वर्ग ही है। लोमड़ी ने इस ढंग से उसे आनन्दद्वीप का वर्णन किया कि पिनोकियो उसकी बातों में आ गया और वहाँ जाने को तैयार हो गया। 

इधर जिमी जिपेट्टो के घर पहुँचा। जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो पिनोकियो नही था। फिर वह उसे खोजने के लिये लौट पड़ा। जब वह चौराहे पर पहुँचा तब आधी रात हो चुकी थी। उसने देखा कि पिनोकियो फिर बदमाशों के चंगुल में फंस गया है। वह एक छकड़े पर लादा जा रहा था। जिस पर और भी बच्चे चढ़े हुए थे। उस छकड़े का मालिक उन बच्चों को कहीं बेचने के लिये ले जा रहा था। लोमड़ी ने उसी के हाथ पिनोकियो को भी बेच दिया था। बच्चों को लादकर छकड़े वाले ने छकड़े को आगे बढ़ाया। 

जिमी ने फिर एक बार पिनोकियो को छुड़ाने की कोशिश की। वह भी छकड़े के पिछले हिस्से में एक कोने में बैठ गया। वह जानता था कि पिनोकियो फिर आफत में फंसने जा रहा है। उसे बचाना उसका कर्तव्य था। कुछ दूर जाकर सब लड़के छकड़े से उतार कर एक स्टीमर में चढ़ाये गये। जिमी भी चढ़ा। समुद्री यात्रा से उसकी तबीयत खराब हो गयी थी पर उसे अपने लिए चिन्ता नहीं थी। वह पिनोकियो के लिये बहुत चिन्तित था, जिसकी दोस्ती लैम्पविक नामक एक लड़के से हो गयी जो उन लड़को में सबसे बदमाश था। जिमी ने पिनोकियो को उसका साथ न करने के लिये मना किया पर काठके पुतले ने उसकी एक भी न सुनी। उसने लैम्पविक का साथ न छोड़ा। स्टीमर आनन्दद्वीप पहुँचा। वहाँ पहुँचने पर बड़ी धूम धाम से बच्चों का स्वागत किया गया। उन्हें तरह तरह की खाने की चीजें दी गयीं। पिनोकियो ने आनन्दद्वीप को वैसा ही पाया जैसा कि लोमड़ी ने बतलाया था। पर जिमी को वहाँ की एक भी बात पसन्द नहीं आयी। वहाँ गये हफ्तों गुजर गये, जिमी को पिनोकियो एक दिन भी अकेले में नही मिला जिससे वह उसे कुछ समझा सके। वह लेम्पविक और दूसरे बदमाश लड़कों के साथ दिन भर घूमा करता। वे सब चारों ओर ऊधम मचाते और शरारतें करते रहते। छकड़े वाला और उस द्वीप का मेयर उन्हें बढ़ावा देते थे। लेम्पविक के साथ रह कर पिनोकियो बहुत सी बुरी आदतें सीख लीं। एक दिन वह उसके साथ बैठा सिगरेट पी रहा था। जिमी यह देखते ही उसके पास पहुँचा और बोला अब तुम सिगरेट भी पीने लगे। पिनोकियो ने लैम्पविक की नकल कर उसी के बदमाशी भरे ढंग से कहा- तो क्या हुआ? जिमी ने कहा- तुम अपने को खराब कर रहे हो। तुम्हें अभी घर चलना होगा। लैम्पविक ने पूछा- यह कौन है? पिनोकियो बोला -यह मेरा अन्तःकरण है यह मुझे सलाह देता है। लैम्पविक ने कहा जब तुम्हारे ऐसे सलाहकार हैं तो मै जाता हूँ। मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। यह कहकर वह चला गया। पिनोकियो ने कहा जिमी तुमने यह क्या किया। लैम्पविक मेरा दिली दोस्त था। यह कहकर वह उसके पीछे दौड़ा गया और कहा - भाई लैम्पविक मुझे छोड़कर मत जाओ। मै तुम्हारे ही साथ रहूँगा। 

अब जिमी से यह बर्दाश्त नहीं हो सका। उसने अपने मन में कहा-अब यह मुझे छोड़कर बदमाशों के साथ रहना पसन्द करता है। जो इच्छा हो वह करे अब मैं घर जाता हूँ। अपने किये का फल उसे आप ही मिलेगा। वह उठकर फाटक की ओर चला। पर यह समझकर कि यहाँ पिनोकियो की जिन्दगी खराब हो जायेगी। किसी तरह उसे यहाँ से हटाना चाहिये वह फिर लौट आया। उसने पिनोकियो को एक बार फिर शिक्षा देने की गरज से बुलाया मगर वह आया नहीं पास ही लैम्पविक के इन्तजार में खड़ा था। लैम्पविक आया, मगर इस बार उसकी आवाज गधे की सी थी और शक्ल भी वैसी ही हो गयी थी। 

पिनोकियो ने आश्चर्य से पूछा-यह क्या तुम्हें हो गया? तुम गधे जैसे क्यों दिखाई दे रहे हो? लैम्पविक ने कहा-मुझे गधा बुखार हो गया है और तुम्हें भी जल्द ही होने वाला है। तुरन्त पिनोकियो ने देखा कि उसके लम्बे लम्बे कान हो गये और पीछे एक दुम भी निकल आयी है। यह देखकर वह डर के मारे काँपने लगा। वह अपने को संभाल नहीं सका और जोर से चिल्ला उठा- जिमी मुझे बचाओ। 

जिमी दौड़ता हुआ पहुँचा पर अब आकर वह क्या करता। दोनों को गधे की शक्ल में देखकर उसने कहा- मेरी बात तो तुम लोगों ने सुनी नहीं अब जरा अपनी ओर देखो। दोनों में एक ने भी उसका जबाव नही दिया। जिमी ने उन्हें वहाँ से भाग चलने की सलाह दी। 

वह आगे आगे चला और वे उसके पीछे पीछे भागते चले। पर ज्यों ही पत्थर की दीवाल के पास पहुँचे कि छकड़े वाले ने सामने से उन्हें घेर लिया। उसने शोर मचाना शुरू किया- पकड़ो पकड़ो ये दोनों भागे जा रहे हैं। खतरे की घंण्टी बजने लगी। पहरेदार हाथों में टार्च लिये इधर उधर दौड़ने लगे। बन्दूक छूटने की आवाज से आसमान गंूज उठा। दोनों भगोड़े डर रहे थे कि उन्हें कहीं गोली न लग जाय। इसी बीच पिनोकियो और जिमी दीवाल के करीब पहुँचे। दोनों फाँदकर दीवाल पर चढ़ गये। पर लैम्पविक नीचे ही रह गया। उसके पांव रस्सी से बंध गये थे। वे उसे उसी हालत में छोड़ समुद्र में कूद पड़े और इस तरह अपनी जान बचाकर निकल भागे। दोनों तैरकर किनारे पहुँचे। वहाँ से उनका घर अभी बहुत दूर था। पिनोकियो घर पहुँचने और अपने पिता को देखने के लिये बेचैन हो रहा था। आनन्दद्वीप अब उसे एक सपना सा मालूम हो रहा था। वे जल्दी जल्दी घर की ओर चल पड़े। रास्ते में पिनोकियो की गधे जैसी शक्ल देखकर लोग हँसते थे और उसका मजाक उड़ाते थे। इसलिये उन्होनें रात को सफर करना तय किया। दिन को वे कहीं लुक छिपकर रहते । 

इस तरह आखिर वे जिपेट्टो के घर पहुँचे। उस समय जाड़ा पड़ने लग गया था। वहाँ जाकर देखा कि दरवाजा बन्द है। पिनोकियो दरवाजे पर धक्का देकर आवाज लगायी,‘ बाबूजी दरवाजा खोलो। ’मगर अन्दर से कोई जबाब नहीं मिला। पिनोकियो को बड़ी चिन्ता हुई कि क्या बात है। उसने खिड़की से झांककर देखा अन्दर एकदम खाली था। सब चीजें जहाँ तहाँ बिखरी पड़ी थी। उन पर ढेरों धूल जमी हुई थी। पिनोकियो दुखित होकर कहा-जान पड़ता है पिताजी कहीं चले गये हैं। उसकी आँखों से आसू बह रहे थे। इतने में हवा के झोंके में एक कागज का टुकड़ा उड़ता दिखाई दिया। जिमी ने कूदकर उसे पकड़ लिया, वह जिपेट्टो की चिट्ठी थी। जिमी ने उसे पढ़ा। जिपेट्टो ने लिखा था प्रिय पिनोकियो मुझे पता चला कि तुम आनन्दद्वीप में हो। इसलिये मैं एक छोटी सी नाव में बैठकर तुम्हारी खोज में निकल पड़ा। पर रास्ते में ही जोर का तूफान आया जिससे मेरी नाव उलट गयी और मै समुद्र के नीचे चला गया। वहाँ मुझे एक व्हेल मछली ने निगल लिया। इस समय मैं उसी के पेट में पड़ा हूँ। यहाँ खाने पीने को कुछ नही मिलता। इसलिये मुझे डर है कि तुम अब मुझे देख नही सकोगे। 

पिनोकियो ने कहा- जिमी मेरे पिता तो अभी जीवित है। उन्हें बचाने के लिये अभी भी काफी वक्त हैं मैं उन्हें व्हेल मछली से छुड़ाने जा रहा हूँ। मेरी ही गलती से वह उसके पेट में चले गये। जिमी ने कहा खबरदार ऐसा ने करना नहीं तो तुम्हारी भी जान चली जायेगी। पिनोकियो ने कहा- परवाह नहीं पिता के बिना मैं जीकर ही क्या करूँगा। मैं उन्हें जरूर बचाऊँगा। 


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Saturday, 3 August 2024

Apni dharti

 अपनी धरती




कितनी अच्छी लगती हमको

अपनी प्यारी धरती

ठंडी ठंडी हवा घूमती

नदियाँ कल कल बहती

वृक्ष हमें जीवन देते हैं

स्वच्छ हवा हमको देते हैं

खाना देते पानी देते

गंदी हवा स्वयं ले लेते

अधिक लगायंे पेड़ अगर हम

धरती भी बच जायेगी

रेगिस्तान न और बनेंगे

हरियाली छा जायेगी।


छोटे होते जाते खेत

बढ़ती जाती सूखी रेत

बन गये कंक्रीटों के जंगल

गर्म हवा गाती है मंगल

बढ़ जायेगी गर्मी खूब

वर्फ पिघल हम जाये डूब

सूखेगा नदियों का पानी

पीली होगी चादर घानी

जीवन अगर बचाना है

पेड़ अनेक लगाना है

हरियाली छा जायेगी

धरती मां बच जायेगी।





Friday, 2 August 2024

Aan kahani

 आन  

दिल्ली के तख्त पर औरंगजेब बैठा था शाहजहाँ को उसने कैद खाने में डाल दिया था। उसके अत्याचारों की खबर जब तब आती रहती थी। रूप नगर के नरेश विक्रम सोलंकी के महल के बाहर बाजार लगा था रौनक हो रही थी। राजकुमारी चचंल अटारी पर अपनी सहेलियों के साथ बैठी बाजार की चहल पहल देख रही थी। 

एक बुढिया आवाज लगाती निकली ,‘सजा है तस्वीरों को बाजार राजा महाराजाओं की बहार ’

‘अरे यह क्या बेच रही है ?’ राजकुमारी चचंल ने उत्सुकता से पूछा ,‘जा इसे बुला ला ये तो राजा महाराजा बेच रही है।’ बुढ़िया आई तो राजकुमारी चचंल ने पूछा,‘ कैसी तस्वीरें हैं। ’

‘राजकुमारी जी बड़े-बड़े मुगल सम्राटों की तस्वीरें हैं ,ये देखिये सम्राट अकबर की तस्वीर है ये शहजादे सलीम की तस्वीर है। ये मयूर सिंहासन पर बैठे शाहजहाँ की है।’

 ‘अरे इन तस्वीरों का क्या करूँगी ? हिन्दू राजकुमारांे की तस्वीरें नही है क्या?-

‘हाँ हाँ देखिये ये राज मान सिंह है ये राज जय सिंह, ये राजा जगत सिंह है।’

‘ ये कोई राजा है बूढ़ी माई ये मुगलों के पिट्ठू रहे हैं उनकी नौकरी बजाई है मुझे तो असली राजा की तस्वीर दिखा,’। बुढिया ने  थैले में से दूसरी कपड़े  में लिपटी पोटली निकाली और  प्रताप सिंह करन सिंह और राज सिंह की तस्वीरें दिखाई। 

‘हूँ इनमें कुछ बात है इन्होंने मुगलों से लोहा लिया था पर अब भी मन नही भरा चल प्रताप सिंह करन सिंह राज सिंह की तस्वीरें तो दे दो कोई और तस्वीर भी दिखा। ’तब बुढ़िया ने औरंगजेब की तस्वीर निकाली और बोली,‘ ये आलमगीर की तस्वीर है राजकुमारी इसका सिजदा करो।’ 

‘सिजदा ! ’चचंल की आँख, नाक सिकुड़ गये मैं इसकी सिजदा क्यों करू ? मेरी जूती के नोक पर है ये। ’

‘क्या कह रही हो लड़की! चुप रहो ’बुढ़िया बोली शहंशाह ने सुन लिया तो रूपनगर की ईट से ईट बजा देंगे’। ‘अच्छा’ चंचल हँसी,‘ ऐसी बात है लो मैं इसे पैर से मारती हूँ।’ यह कहकर तस्वीर पर जोर से अपनी जूती मारी और सहेलियों से बोली,‘ लो तुम भी मारो। ’

हँसते हुए एक एक कर सब ने अपने पैर उस तस्वीर को मारे ,तस्वीर टुकड़े टुकड़े हो गई। चचंल ने एक बार फिर अपनी ली हुई तस्वीरें एक एक कर देखी और बोली ठीक इन तस्वीरांे का मूल्य आप ले लो।’ कहकर बुढ़िया को मूल्य दिया। 

बुढ़िया ने तस्वीरों को समेट कर कपड़े में लपेट कर थैले में रखा साथ ही एक कपड़े के टुकड़े में आलमगीर की तस्वीर के टुकड़े भी लपेट कर रख लिये। 

बुढ़िया दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में पहुँची और दरबान से कहा कि उसे आलमगीर से मिलना है। ‘क्या काम है अम्मी जान ? क्या बताऊँ बादशाह को कि तुम क्यों मिलना चाहती हो?’ दरबान ने कहा। ‘

‘नहीं मैं उन्ही को बताऊँगी। ’

दरबान ने बुढ़िया को दरबार में भेज दिया

‘ हाँ क्या अर्ज करना है बताओ बादशाह का’े।’ एक दरबारी ने बादशाह की आज्ञा पाकर बुढ़िया से कहा तो बुढ़िया ने कहा ,‘आलीजहाँ का अपमान एक लौंडी ने किया है मुझे सहन नही हुआ इसलिये दरबार में आई हूँ। 

एकदम सारे दरबार में आवाज उठी,‘ आलीजहाँ का अपमान! क्या कहती हो बुढ़िया किसकी जुर्रत हुई है यह ।’ बुढ़िया ने पूरी घटना नमक मिर्च लगाकर सिलसिले बार बादशाह को सुनाई और तस्वीर के टुकड़े आलमगीर के सामने रख दिये। 

‘इतनी तौहीन करने की उस काफिर की हिम्मत कैसे हुई ? मैं इसका बदला लूँगा ’।साथ ही उसने कहा ‘सेनापति’

‘ आज्ञा हूजूर’ 

’रूपनगर की एक अदना लड़की ने मेरी तौहीन की है रूपनगर पर सेना ले जाकर धावा बोलो उसकी ईट से ईट बजाकर उस बदजुबान लड़की को डोली में बैठा कर लाओ मैं उससे निकाह पढ़ाऊँगा।’ 

‘जो हुक्म जहाँपनाह ’सेनापति ने कोर्निश की और तुरन्त ही सेना लेकर रूपनगर की ओर प्रस्थान कर गया । साथ ही  आगे एक हरकारा नरेश विक्रम सिंह के पास फरमान लेकर भेज दिया।‘ सेना ने रूपनगर की ओर कूचकर दिया है अपनी पुत्री का डोला तैयार रखे जहाँपनाह आलमगीर की वह बेगम बनाई जायगी। ’

नरेश विक्रम सिंह ने जब फरमान पढ़ा तो काँप उठा। वह महल में इधर से उधर चक्कर काटने लगा। तरह तरह से अपने को समझा रहा था। वह अच्छी तरह जानता था कि मुगल सेना से वह टक्कर नही ले सकता। युद्ध का परिणाम पराजय ही है तब भी वे राजकुमारी को ले जायेगंे इससे अच्छा है उसे डोली में बैठाकर सम्मान से विदा कर दें। पहले भी तो कई राज कन्याओं का विवाह मुगल बादशाहों से हुआ है इसमें कुछ नया नहीं है अनहोनी नहीं है। 

जब राजकुमारी चंचल को ज्ञात हुआ कि पिता ने उसे मुगल सम्राट को सौंपने का निर्णय लिया है तो उसका अन्तर तक क्रोध से लाल हो गया। उसके ह्नदय में संताप की लहरें उठने लगी। वह राजपूत कन्या मुगल बेगम बनेगी उसे लेाग मुगलानी कहेंगे। नहीं यह कभी नही होगा । नहीं नहीं की गूँज पूरे राजमहल मैं गूँज उठी ‘मैं मुगल बादशाह के यहाँ नही जाऊँगी।’ 

उसकी गम्भीर वाणी की नहीं पिता के कानों तक पहँुची। पिता चचंल के पास आये और बोले ,‘चंचल बेटी हम स्वयं कहाँ तुम्हें भेज रहे हैं पर रूपनगर की स्वतन्त्रता इसकी जनता के भले के लिये आवश्यक है कि तुम औरगंजेब की बेगम बनना स्वीकार कर लो । हम पर विपदाऐं टूट पड़ेगी। मुगल बादशाह रूपनगर का विनाश कर देगा। रक्त की नदियाँ बह जायेंगी।’

‘ बह जाने दीजिये पिताजी रक्त की नदी मैं भी उसमें स्नान कर लूँगी। उसकी आवाज में गरज एक राजपूतनी की ललकार थी ।’

‘पर मैं तेरी रक्षा नही कर पाऊँगा, मुझ में इतनी शक्ति नहीं है ।’हताशा के स्वर मैं नरेश विक्रम ने कहा ‘नर सहंार भी होगा और तुझे तो वे तब भी ले जायेंगे।’ 

‘मुझे मेरी इच्छा के विरूद्ध कैसे ले जा सकते हैं मैं राजपूत कन्या हूँ। राजपूतनी की इच्छा के विरूद्ध तो देवता भी कुछ नही कर सकते। हमारे पास तीन सहेलियंा तो सदा रहती है अग्नि विष और तलवार इनके सहारे ही क्षत्राणियाँ अपनी रक्षा करती हैं। आप आराम कीजिये मैं अपनी रक्षा अपने आप कर लूँगी।’ 

कुछ देर नरेश विक्रम सिंह चचंल के कमरे में खड़े रहे उसे समझाना चाहा तो उसने स्पष्ट शब्दों में कह दिया।‘ नही पिताजी कुछ नही मैं अपना निर्णय नही बदल सकती।’ 

नरेश विक्रम सिंह चिंताग्रस्त चचंल के कमरे से निकल आये। चचंल इधर से उधर चक्कर काटती सोच रही थी अपने धर्म की रक्षा कैसे करे । सामने उसके खरीदे चित्र रखेे थे। सबसे ऊपर राजसिंह का चित्र था राज सिंह वह बुदबुदाई। 

‘राज सिंह आप महाराणा  प्रताप के वंशधर हो। ’

वह टकटकी लगार राजसिंह के चित्र को देख रही थी आप मेरी सहायता नही करोगे आपके पूर्वजों ने तो क्षत्रिय धर्म की रक्षा के लिये प्राण न्यौछावर किये थे। रूक्मणि के सामने भी तो यही समस्या आई थी रूक्मणि ने कृष्णा को खत लिखा था। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई मन शान्त हो गया और राज सिंह को पत्र लिखने बैठ गई। पत्र लिखकर अपनी विश्वास पात्र पत्रवाहक को तुरन्त रवाना कर दिया।

राणा राज सिंह ने जब चचंल का पत्र पढ़ा तो उनके क्षत्रिय रक्त में उबाल आ गया। चेहरा क्रोध से रक्तिम हो गया उन्होनें पत्र वाहक से कहा राजकुमारी से कहना उनका पत्र ठीक स्थान पर पहुँच गया है वे निश्चित रहें। राजसिंह ने पत्र की तिथि देखी मात्र एक ही दिन का समय है तुरन्त सेना को तैयार होने की आज्ञा दे कूच कर दिया। 

पत्र वाहक ने राजकुमारी को संदेश दे दिया था। मुगल सेनापति रूपनगर पहुँचा तो उसके स्वागत में द्वार खोल दिये गये और किसी प्रकार को विरोध किये राजकुमारी चचंल का डोला उसके सुपुर्द कर दिया गया। वह मन ही मन उलझन में भी था। आशा के विरूद्ध बहुत ही आसानी से राजकुमारी को सौंप दिया गया। सेना के साथ राजकुमारी का डोला चल रहा था। अरावली की पहाड़ियों के बीच से सेना गुजर रही थी। राजकुमारी बार बार पर्दा उठाकर देख रही थी। वह देखती और पर्दा गिरा देती। 

एकाएक पहाड़ियों से बडे़ बड़े पत्थर बरसने लगे। मुगलिया फौज पत्थरों की बौछार से बचने के लिये भागी आगे रास्ते पर बड़े बड़े पत्थर थे उन्होंने रास्ता बंद कर दिया था। मुगल सेनापति ने पीछे लौटने के लिये कहा लेकिन रास्ता वहाँ भी तब तक पत्थरों से बंद हो चुका था मुगल सेना कैद होकर रह गई थी न आगे जा सकती न पीछे । ऊपर से पत्थर बरस रहे थे और बरसाने वाले दिख नही रहे थे। 

सेना के बीच से आवाजें उठ रही थी कहर कहर आह ओह मर गया। हजारों मुगल सैनिक पत्थरों से कुचल कर मर गये बचे किसी तरह भाग गये। 

राजकुमारी चचंल राणा राजसिंह के समाने उपस्थित हुई राणा राजसिंह ने कहा,‘राजकुमारी मुगल सैनिक भाग चुके हैं अब आपका डोला पिता के पास पहुँचाया जा रहा है’

‘ नहीं महाराणा सिंह नहीं मैं पिता के घर वापस नही जाऊँगी।’ राजकुमारी ने कहा,‘ मुझे तो पिता ने एक मुगल को सौप दिया है अब नही जाऊँगीं। मेरा डोला आपके सामने उतरा है मै अब यहीं रहना चाहूँगी ’कहकर राजकुमारी ने अपना चेहरा झुका लिया। चेहरा रक्तिम हो गया। 

कुछ क्षण राजसिंह चुप रहे फिर बोले ,‘स्वागत है राजकुमारी राजसिंह के महल में आपका स्वागत है ।’’ डोला राजसिंह के महल की ओर चला और जनता में राणा राजसिंह की जय घोष होने लगी।


डा॰ शशि गोयल