जिमी ने आश्चर्य से पिनोकियो की ओर देखा। अब पिनोकियो वह पिनोकियो नहीं था। अब वह कमजोर और मूर्ख काठ के पुतले की जगह साहसी और निस्वार्थ पिनोकियो था। जिमी ने कहा -मगर भाई समुद्र तो यहाँ से बहुत दूर है।’ पिनोकियो ने कहा मैं इसकी परवाह नही करता अपने पिताजी की जान बचाने के लिये मुझे कोई जगह दूर नही मालूम होती। इतने में वहाँ नीलम परी चील के रूप में प्रकट हुई और बोली चिन्ता मत करो मै तुम्हें अपनी पीठ पर ले जाकर वहाँ पहुँचा दूंगी। इसके बाद उसने पिनोकियो को अपनी पीठ पर चढ़ा लिया। जिमी भी चील पर सवार हो समुद्र की ओर चला। रात भर उड़ने के बाद चील एक ऊँचे चट्टान पर उतरी। उसी के नीचे विशाल समुद्र गरज रहा था। चील ने पिनोकियो से कहा मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के यहाँ ले जा सकती हूँ। क्या तुम ऐसी खतरनाक यात्रा करने को तैयार हो? पिनोकियो ने कहा हाँ मैं तैयार हूँ। आप जो मुझे अपनी पीठपर चढ़ाकर यहाँ तक ले आयीं उसके लिये आपको धन्यवाद है। अच्छा गुडवाई। चील ने भी जबाव में गुडवाई कहा और चली गयी। पर पिनोकियो और जिमी दोनों में किसी को भी मालूम नही हुआ कि वह चील नीलम परी थी।
चील के चले जाने पर पिनोकियो ने अपनी गधे की दुम में एक बड़ा पत्थर बाँधा जिससे वह समुद्र की तह में अपना लंगर डाल सके। फिर दोनों उस चट्टान से कूद पड़े। पत्थर के भारी होने से पिनोकियो बहुत जल्द समुद्र के नीचे चला गया। उससे चिपका छोटा जिमी भी था। दोनों एक दूसरे को पकड़े समुद्र की तह में पहुँचे। पहले तो वहाँ बहुत अंधेरा मालूम हुआ।
धीरे धीरे हरी रोशनी दिखाई देने लगी। फिर दोनों ने देखा उनके सिरों पर पेड़ो की डालियों की तरह समुद्री पौघे छाये हुए हैं। चारों ओर रंग बिरंगी चमकती मछलियाँ तैर रही थी। पर पिनोकियो को उनसे कुछ मतलब नही था। वह तो दूसरे ही इरादे में वहाँ गया था। उसने गुफाओं और कन्दराओं में उस व्हेल मछली की तलाश की। पर उसकी दुम में जो पत्थर बंध था उससे वह बहुत धीरे धीरे चल पाता था। उसने अधीर होकर कहा ,‘जिमी बताओ वह जगह कहाँ है जहाँ वह व्हेल रहती है।’ जिमी ने कहा ,‘मुझे मालूम नहीं मगर हम यहाँ के लोगों से पूछकर उसका पता लगा लेगें।’ यह कहकर उसने एक सीप को धीरे से ठोकर लगाओ। सीप खुल गयी और मोती निकल आया। जिमी ने कहा ,‘भाई मोती मुझे क्षमा करना तुम्हें मालूम है व्हेल कहाँ रहती है?’ यह सुनते ही मोती डर के मारे बिना कुछ कहे सीप में समा गया। इसी तरह दोनों ने वहाँ के स्कूली बच्चों मैदान में चरते घोड़ो और दूसरे जीव जन्तुओं से व्हेल का पता पूछा मगर किसी ने भी डर के मारे बतलाया नही। फिर भी दोनों हताश नहीं हुए और व्हेल की खोज में आगे बढ़ते गये। पर कहीं भी उस खूखांर जानवर का पता नहीं मिला। पिनोकियो ने कुछ चिन्तित होकर कहा समय बीतता चला जाता है। अब तक हम लोग उसका पता नही लगा सके। मेरे पिता भूखों मर रहे होगें। वह अपने पिता को जोर जोर से पुकारने लगा। पर उसके जबाव में कही से भी आवाज नही आयी। जिमी ने कहा,‘ पिनोकियो चलो घर चलें हमें यहाँ उस व्हेल का पता नही लग सकता। शायद हम लोग भूल से दूसरे समुद्र में चले आये हैं।’ पिनोकियो ने कहा,‘ नहीं जिमी चाहे जो हो अब मैं पीछे पैर नहीं रख सकता।’
पास ही व्हेल मछली खुर्राटे भर रही थी। कभी कभी उसकी पीठ पानी की सतह पर दिखाई पड़ जाती जिससे टापू होने का धोखा होता था। उसी के पेट में बूढ़ा मिस्त्री था। उसकी पालतू बिल्ली और लाल मछली भी उसके साथ थी। मिस्त्री ने व्हेल के पेट में एक छोटा सा मकान, बक्सों के टुकड़े से बना लिया था। खाने पीने के बर्तन भी उसने बना लिये थे, मगर खाने का सामान बहुत कम था। यहाँ तक कि वह मरने मरने को हो गया था। हर रोज वह व्हेल के पेट में बंसी लगाकर मछलिया मारा करता पर जब वह सो जाती थी तब उसके पेट में एक भी मछली नही जाती थी। जिपेट्टो ने बिल्ली से कहा- हम लोग यहाँ भूखों मर रहे हैं और पिनोकियो न जाने कहाँ क्या कर रहा होगा। जब बूढ़ा मिस्त्री बाहर मछली मारने चला गया तब बिल्ली फिगारो से रहा नही गया, वह भूख से बेचैन हो लाल मछली पर झपटी। जिपेट्टो इसे देख लिया। उसने बिल्ली को डाँटा और कहा कि इसीलिए तुमको इतने दिन से पाल रखा था कि तुम अपने साथी को ही हड़पने लगो। खबरदार ऐसा मत करना।’ इतने में व्हेल मछली के पेट में एक बक्स आया। जिपेट्टो ने समझा उसमें खाने की चीजें होंगी पर खोलने पर उसमें एक भोजन बनाने की किताब मिली। उसके पन्ने खोलकर जिपेट्टो पढ़ने लगा। एक पन्ने पर मछली बनाने की विधि लिखी थी। पढ़ते ही उसके मुँह से राल टपक पड़ी वह अपनी पालतू लाल मछली की ओर बढ़ा और उसे कड़ाही में तलने जा ही रहा था कि उसे ख्याल आया कि मैं क्या कर रहा हूँ। उसने मछली से माफी माँगी और कहा कि हम दोनों इतने दिनों तक साथ रहे अगर भूखों मरना ही है तो दोनों एक साथ मरेंगे। बड़ा करूणाजनक दृश्य था। सबने समझा कि आखिरी वक्त आ गया।
No comments:
Post a Comment