साहस कथा
मगर की खाल
बलदेव अभी लड़का ही था और उसका काम था, खेतों में घुस आये साही और सूअरों को भगा देना। कभी कभी बाघ, चीता बकरियों की फिराक में गाँव में आ जाते तो बंदूक दाग कर भगा देना। यद्यपि बलदेव की राइफल पुरानी पड़ गई थी लेकिन तेल डालकर वह उसे चमकाये रखता था, गोलियाँ मंहगी थीं खर्च भी देखभाल कर ही करता था। बंदूक वाले गाँव में दो चार ही थे और गांव वाले समय समय पर खेतों की रक्षा के लिये उन्हें बुलाते रहते थे।
एक दिन बलदेव नदी के उथले जल में बत्तखों को देख रहा था। बत्तखों के सिर पर मोर का सा ताज था, ‘वाह! क्या राजा के से मुकुट हैं, एकाएक बत्तखों के बीच से एक थूंथनी प्रगट हुई’ ओह! छोटा-सा मगर आ गया। ’बलदेव ने सोचा।
लेकिन जब वह ऊपर पूरा आया तो वह छोटा-मोटा मगर नही था एक विशालकाय मगर था। मगर बत्तखों को परेशान नहीं करता इसलिये बत्तखें आराम से तैरती रहीं, लेकिन इस मगर ने अपना विशाल मुँह खोला, एक बत्तख को लपका और पानी में डुबकी लगा गया। सब बत्तखें हड़बड़ा कर भाग खड़ी हुईं। मगर की लंबाई दो भैसों के बराबर थी। यद्यपि नदी में मगर थे पर इतना बड़ा मगर गाँव वालों ने नही देखा था।
बलदेव ने दुबारा मगर देखने की बहुत कोशिश की लेकिन फिर दिखाई नहीं दिया। काश वह उसके रहने का स्थान देख पाता।एक दिन बलदेव ने गाँव वालों की चीख-पुकार सुनी। कुछ अघटित घट रहा था। उस चीख पुकार में ‘बलदेव बलदेव’ की आवाजें भी शामिल थीं। बलदेव दौड़कर पहुँचा, देखा मगर ने एक गाय पकड़ रखी थी और उसे पानी में घसीट रहा था।
गाय अनाथ हरखू की थी और उसे बहुत प्यारी थी। उसकी रोटी का एकमात्र सहारा थीं। गाँववाले पत्थर छड़ी टहनी जो हाथ में था उसी से मगर को मार रहे थे। कई आदमी गाय की पूंछ पकड़ पीछे खींच रहे थे। और कुछ हरखू को पकड़ रहे थे जो नंगे हाथों ही मगर को मारने दौड़ रहा था।
बलदेव को निशाना नही मिल पा रहा था उसने रास्ता छोड़ने को कह गोली दागी पर मगर पर उसका कोई असर नहीं हुआ। उधर गाय हार गई और मगर शिकार के साथ पानी में समा गया। ऐसे तो सारे गाँव वाले भी उसके पेट में समा सकते हैं। सबके दिमाग में यही था।
हरखू सिसक रहा था। बलदेव ने निश्चय कर लिया कि वह मगर को मार कर ही रहेगा। बलदेव मगर को जगह जगह ढूँढ़ता और मगर बलदेव को। वे एक दूसरे के पक्के दुश्मन बन चुके थे।
एक दिन बलदेव ने करीब करीब उसे घेर ही लिया था। नदी में आखें और नाक निकाले लेटा हुआ था। पास ही लकड़ी का लठ्ठा तैर रहा था जब तक बलदेव की नजर उस पर पड़ी तब तक मगर की भी नजर उस पर पड़ चुकी थी और नजर पड़ते ही पहचान उभरी और वह डुबकी लगा गया। बलदेव समझ गया मगर उसे पहचानता भी है और उसका मकसद भी पहचानता है। लगता है मगर भी उसे पकड़ने की फिराक में है। बलदेव और मगर के बीच यु( ठन गया था और जीत केवल मृत्यु ही बता सकती थी। बलदेव अब उसकी हर हरकत पर नजर रखने लगा। कहाँ पथरीली नदी के हिस्से में से निकल कर कहाँ चट्टानों पर बैठता है। नदी का निचला हिस्सा बहुत ठंडे पानी का था वहॉं मगर कम ही जाना पसंद करते थे लेकिन वह मगर वहीं रहता था।
बलदेव के घर से वह स्थान कई कोस था। जगह जगह निरीक्षण के बाद बलदेव ने निश्चय किय कि सबसे अच्छी जगह मगर के शिकार के लिये मटियाला किनारा है। नरम मिट्टी में उसके घिसटने के निशान बहुत देखे थे और एक दुर्गन्ध उस स्थान से आती थी। वह मगर का खाना सुरक्षित रखने का स्थान था। बलदेव प्रतिदिन वहाँ उसके इंतजार में बैठने लगा। कई दिन बलदेव ने उसे देखा लेकिन या तो बहुत दूर होता था या उसे देखते ही सरक जाता। एक दिन वह राक्षस ठीक बलदेव के छिपने के स्थान के नीचे से निकला। वहाँ से वह निशाना भी आराम से ले सकता था।
बैंग बंदूक की गोली का धमाका हुआ। चिड़ियाएँ डर कर उड़ चलीं। मगर घिसट कर नदी की तरफ चला ,ओह ! मरा हुआ मगर डूब जाता है यह क्या हुआ अब शिकार हाथ नही लगेगा। वह उसे रखना चाहता था। अब तक का उसका सबसे बड़ा शिकार होता। बलदेव जल्दी जल्दी नीचे उतरने लगा जिससे वह मगर को पानी में जाने से रोक सके लेकिन उसे पता नही था कि वह उसे कैसे रोकेगा?
मगर के पास वह जा नही सकता था क्योंकि उसके पास पहुॅंचना मौत के मुँह में पहुँचने के समान था , साँप की तरह वह अपना शरीर तोड़ मरोड़ रहा था, उसकी पूंछ की मार बहुत तगड़ी होती है। मगर पानी तक पहुँच गया। कुछ देर स्थिर रहा फिर पानी में डूब गया। एक रक्त की रेखा पानी में रह गई।
बलदेव को बड़ा क्षोभ हुआ। शिकार हाथ से निकल गया। उसने धोती उतारकर हाथ में ली और पानी में कूद गया। शायद उसे पकड़ कर घसीट कर ला सके। पानी के अंदर मगर उल्टा पड़ा था। जैसे मरी हुई मछली होती है। धोती का फंदा बनाकर उसने मगर की पूंछ में डाला। उसके छूने से मगर में हरकत हुई लेकिन बलदेव ने सोचा अभी शरीर गर्म है हरकत हो सकती है। वह सांस लेने के लिये ऊपर आया। एक मिनट बाद फिर नीचे गया। जैसे ही उसे छुआ उसने झटका लिया और पलट गया, ऊफ! वह मरा नहीं था।
बलदेव सब वहीं छोड़ ऊपर की तरफ बढ़ा लेकिन मगर और तेजी से यह देखने बढ़ा कि उसे किसने छुआ। यद्यपि वह अर्द्ध चैतन्य था लेकिन गति बलदेव से अधिक तेज थी, दो उछाल मारकर ही वह बलदेव के पास आ गया और उसका एक पैर पकड़ लिया। यद्यपि बलदेव ने बहुत हाथ पैर मारे लेकिन कुछ ही देर में उसकी सांसों में पानी भर गया और वह बेहोश हो गया।
अगर मगर स्वयं पूरी तरह होश में होता तो यह बलदेव का अंतिम दिन होता। जैसे कि अन्य मगर शिकार पानी में खीच ले जाते हैं , वह बलदेव को पानी में नहीं ले गया बल्कि पानी में बने अपने खाना रखने के कमरे में धकेल दिया, क्योंकि बलदेव को जब होश आया उसका मुँह कीचड़ में था और वह एक ढलान पर पड़ा हुआ था। रोशनी की किरण उस पर एक दरार मेें से आ रही थी और हवा के झोंके आ रहे थे। तेज दर्द की टीसें उठ रही थी। उसके चेहरे के नीचे ही खुला स्थान था जहाँ से वह नदी का तल बखूबी देख सकता था। पहले बालू पर घिसटने के गहरे निशान थे फिर कुछ ही दूर पर मगर की पीठ दिखाई दी। वह खोह के बाहर ही आराम कर रहा था। बलदेव ने चारों ओर देखा वहाँ उसके खाने का सामान रखा था। उसे शीघ्र ही गाय के सींग भी दिखाई दे गये।
एक भय की लकीर उसे ऊपर से नीचे तक सिहरा गई। जीवन का मोह उसमें एक नई आशा लेकर आया। पैर उसका फट तो गया था पर टूटा नही था सारा लहूलुहान हो रहा था। विचार कौंधा ‘यह मिट्टी है। लक्कड़बग्घे मगर का खाना खोद कर निकाल लेते हैं वह भी क्या निकल सकता है?’
बड़े जानवर के कंधे की हड्डी पड़ी थी। बलदेव ने ध्ीारे धीरे मिट्टी ऊपर से खोदनी शुरू की। अपने पीछे उसनेे अन्य खाने का सामान रख दिया था जिससे अगर मगर खाने आये तो पहले अन्य सामान ले।
उसका काम ठीक ठीक आगे बढ़ रहा था। मात्र एक पतली सी पर्त रह गई थी । लेकिन पर्त सूर्य की गरमी से सूख गई थी। डर था आवाज से मगर ऊपर से न आ जाए। परन्तु फिर भी उसने पागलों की तरह खोदना शुरू किया।
उसे पेड़ वगैरह दिखाई देने लगे। वह सिर निकाल पाता कि उसे भारी शरीर के मांद में घुसने का एहसास हुआ। वह भय से चीख उठा और तेजी से ऊपर निकला कैसे वह नहीं जानता। कुछ देर में मिट्टी से सना वह जमीन पर खड़ा था लड़खड़ाता वह घर पहुँचा मरहम पट्टी करवा वापस आया और मगर को तार से गोद गोद कर मार डाला। उसे खोह में से निकाल कर घर लाया। उस विशाल मगर की खाल उसने दीवार पर टांग दी जिसे देख देख कर उसके बच्चे आज भी खुश होते हैं।
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