Friday, 2 August 2024

Aan kahani

 आन  

दिल्ली के तख्त पर औरंगजेब बैठा था शाहजहाँ को उसने कैद खाने में डाल दिया था। उसके अत्याचारों की खबर जब तब आती रहती थी। रूप नगर के नरेश विक्रम सोलंकी के महल के बाहर बाजार लगा था रौनक हो रही थी। राजकुमारी चचंल अटारी पर अपनी सहेलियों के साथ बैठी बाजार की चहल पहल देख रही थी। 

एक बुढिया आवाज लगाती निकली ,‘सजा है तस्वीरों को बाजार राजा महाराजाओं की बहार ’

‘अरे यह क्या बेच रही है ?’ राजकुमारी चचंल ने उत्सुकता से पूछा ,‘जा इसे बुला ला ये तो राजा महाराजा बेच रही है।’ बुढ़िया आई तो राजकुमारी चचंल ने पूछा,‘ कैसी तस्वीरें हैं। ’

‘राजकुमारी जी बड़े-बड़े मुगल सम्राटों की तस्वीरें हैं ,ये देखिये सम्राट अकबर की तस्वीर है ये शहजादे सलीम की तस्वीर है। ये मयूर सिंहासन पर बैठे शाहजहाँ की है।’

 ‘अरे इन तस्वीरों का क्या करूँगी ? हिन्दू राजकुमारांे की तस्वीरें नही है क्या?-

‘हाँ हाँ देखिये ये राज मान सिंह है ये राज जय सिंह, ये राजा जगत सिंह है।’

‘ ये कोई राजा है बूढ़ी माई ये मुगलों के पिट्ठू रहे हैं उनकी नौकरी बजाई है मुझे तो असली राजा की तस्वीर दिखा,’। बुढिया ने  थैले में से दूसरी कपड़े  में लिपटी पोटली निकाली और  प्रताप सिंह करन सिंह और राज सिंह की तस्वीरें दिखाई। 

‘हूँ इनमें कुछ बात है इन्होंने मुगलों से लोहा लिया था पर अब भी मन नही भरा चल प्रताप सिंह करन सिंह राज सिंह की तस्वीरें तो दे दो कोई और तस्वीर भी दिखा। ’तब बुढ़िया ने औरंगजेब की तस्वीर निकाली और बोली,‘ ये आलमगीर की तस्वीर है राजकुमारी इसका सिजदा करो।’ 

‘सिजदा ! ’चचंल की आँख, नाक सिकुड़ गये मैं इसकी सिजदा क्यों करू ? मेरी जूती के नोक पर है ये। ’

‘क्या कह रही हो लड़की! चुप रहो ’बुढ़िया बोली शहंशाह ने सुन लिया तो रूपनगर की ईट से ईट बजा देंगे’। ‘अच्छा’ चंचल हँसी,‘ ऐसी बात है लो मैं इसे पैर से मारती हूँ।’ यह कहकर तस्वीर पर जोर से अपनी जूती मारी और सहेलियों से बोली,‘ लो तुम भी मारो। ’

हँसते हुए एक एक कर सब ने अपने पैर उस तस्वीर को मारे ,तस्वीर टुकड़े टुकड़े हो गई। चचंल ने एक बार फिर अपनी ली हुई तस्वीरें एक एक कर देखी और बोली ठीक इन तस्वीरांे का मूल्य आप ले लो।’ कहकर बुढ़िया को मूल्य दिया। 

बुढ़िया ने तस्वीरों को समेट कर कपड़े में लपेट कर थैले में रखा साथ ही एक कपड़े के टुकड़े में आलमगीर की तस्वीर के टुकड़े भी लपेट कर रख लिये। 

बुढ़िया दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में पहुँची और दरबान से कहा कि उसे आलमगीर से मिलना है। ‘क्या काम है अम्मी जान ? क्या बताऊँ बादशाह को कि तुम क्यों मिलना चाहती हो?’ दरबान ने कहा। ‘

‘नहीं मैं उन्ही को बताऊँगी। ’

दरबान ने बुढ़िया को दरबार में भेज दिया

‘ हाँ क्या अर्ज करना है बताओ बादशाह का’े।’ एक दरबारी ने बादशाह की आज्ञा पाकर बुढ़िया से कहा तो बुढ़िया ने कहा ,‘आलीजहाँ का अपमान एक लौंडी ने किया है मुझे सहन नही हुआ इसलिये दरबार में आई हूँ। 

एकदम सारे दरबार में आवाज उठी,‘ आलीजहाँ का अपमान! क्या कहती हो बुढ़िया किसकी जुर्रत हुई है यह ।’ बुढ़िया ने पूरी घटना नमक मिर्च लगाकर सिलसिले बार बादशाह को सुनाई और तस्वीर के टुकड़े आलमगीर के सामने रख दिये। 

‘इतनी तौहीन करने की उस काफिर की हिम्मत कैसे हुई ? मैं इसका बदला लूँगा ’।साथ ही उसने कहा ‘सेनापति’

‘ आज्ञा हूजूर’ 

’रूपनगर की एक अदना लड़की ने मेरी तौहीन की है रूपनगर पर सेना ले जाकर धावा बोलो उसकी ईट से ईट बजाकर उस बदजुबान लड़की को डोली में बैठा कर लाओ मैं उससे निकाह पढ़ाऊँगा।’ 

‘जो हुक्म जहाँपनाह ’सेनापति ने कोर्निश की और तुरन्त ही सेना लेकर रूपनगर की ओर प्रस्थान कर गया । साथ ही  आगे एक हरकारा नरेश विक्रम सिंह के पास फरमान लेकर भेज दिया।‘ सेना ने रूपनगर की ओर कूचकर दिया है अपनी पुत्री का डोला तैयार रखे जहाँपनाह आलमगीर की वह बेगम बनाई जायगी। ’

नरेश विक्रम सिंह ने जब फरमान पढ़ा तो काँप उठा। वह महल में इधर से उधर चक्कर काटने लगा। तरह तरह से अपने को समझा रहा था। वह अच्छी तरह जानता था कि मुगल सेना से वह टक्कर नही ले सकता। युद्ध का परिणाम पराजय ही है तब भी वे राजकुमारी को ले जायेगंे इससे अच्छा है उसे डोली में बैठाकर सम्मान से विदा कर दें। पहले भी तो कई राज कन्याओं का विवाह मुगल बादशाहों से हुआ है इसमें कुछ नया नहीं है अनहोनी नहीं है। 

जब राजकुमारी चंचल को ज्ञात हुआ कि पिता ने उसे मुगल सम्राट को सौंपने का निर्णय लिया है तो उसका अन्तर तक क्रोध से लाल हो गया। उसके ह्नदय में संताप की लहरें उठने लगी। वह राजपूत कन्या मुगल बेगम बनेगी उसे लेाग मुगलानी कहेंगे। नहीं यह कभी नही होगा । नहीं नहीं की गूँज पूरे राजमहल मैं गूँज उठी ‘मैं मुगल बादशाह के यहाँ नही जाऊँगी।’ 

उसकी गम्भीर वाणी की नहीं पिता के कानों तक पहँुची। पिता चचंल के पास आये और बोले ,‘चंचल बेटी हम स्वयं कहाँ तुम्हें भेज रहे हैं पर रूपनगर की स्वतन्त्रता इसकी जनता के भले के लिये आवश्यक है कि तुम औरगंजेब की बेगम बनना स्वीकार कर लो । हम पर विपदाऐं टूट पड़ेगी। मुगल बादशाह रूपनगर का विनाश कर देगा। रक्त की नदियाँ बह जायेंगी।’

‘ बह जाने दीजिये पिताजी रक्त की नदी मैं भी उसमें स्नान कर लूँगी। उसकी आवाज में गरज एक राजपूतनी की ललकार थी ।’

‘पर मैं तेरी रक्षा नही कर पाऊँगा, मुझ में इतनी शक्ति नहीं है ।’हताशा के स्वर मैं नरेश विक्रम ने कहा ‘नर सहंार भी होगा और तुझे तो वे तब भी ले जायेंगे।’ 

‘मुझे मेरी इच्छा के विरूद्ध कैसे ले जा सकते हैं मैं राजपूत कन्या हूँ। राजपूतनी की इच्छा के विरूद्ध तो देवता भी कुछ नही कर सकते। हमारे पास तीन सहेलियंा तो सदा रहती है अग्नि विष और तलवार इनके सहारे ही क्षत्राणियाँ अपनी रक्षा करती हैं। आप आराम कीजिये मैं अपनी रक्षा अपने आप कर लूँगी।’ 

कुछ देर नरेश विक्रम सिंह चचंल के कमरे में खड़े रहे उसे समझाना चाहा तो उसने स्पष्ट शब्दों में कह दिया।‘ नही पिताजी कुछ नही मैं अपना निर्णय नही बदल सकती।’ 

नरेश विक्रम सिंह चिंताग्रस्त चचंल के कमरे से निकल आये। चचंल इधर से उधर चक्कर काटती सोच रही थी अपने धर्म की रक्षा कैसे करे । सामने उसके खरीदे चित्र रखेे थे। सबसे ऊपर राजसिंह का चित्र था राज सिंह वह बुदबुदाई। 

‘राज सिंह आप महाराणा  प्रताप के वंशधर हो। ’

वह टकटकी लगार राजसिंह के चित्र को देख रही थी आप मेरी सहायता नही करोगे आपके पूर्वजों ने तो क्षत्रिय धर्म की रक्षा के लिये प्राण न्यौछावर किये थे। रूक्मणि के सामने भी तो यही समस्या आई थी रूक्मणि ने कृष्णा को खत लिखा था। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई मन शान्त हो गया और राज सिंह को पत्र लिखने बैठ गई। पत्र लिखकर अपनी विश्वास पात्र पत्रवाहक को तुरन्त रवाना कर दिया।

राणा राज सिंह ने जब चचंल का पत्र पढ़ा तो उनके क्षत्रिय रक्त में उबाल आ गया। चेहरा क्रोध से रक्तिम हो गया उन्होनें पत्र वाहक से कहा राजकुमारी से कहना उनका पत्र ठीक स्थान पर पहुँच गया है वे निश्चित रहें। राजसिंह ने पत्र की तिथि देखी मात्र एक ही दिन का समय है तुरन्त सेना को तैयार होने की आज्ञा दे कूच कर दिया। 

पत्र वाहक ने राजकुमारी को संदेश दे दिया था। मुगल सेनापति रूपनगर पहुँचा तो उसके स्वागत में द्वार खोल दिये गये और किसी प्रकार को विरोध किये राजकुमारी चचंल का डोला उसके सुपुर्द कर दिया गया। वह मन ही मन उलझन में भी था। आशा के विरूद्ध बहुत ही आसानी से राजकुमारी को सौंप दिया गया। सेना के साथ राजकुमारी का डोला चल रहा था। अरावली की पहाड़ियों के बीच से सेना गुजर रही थी। राजकुमारी बार बार पर्दा उठाकर देख रही थी। वह देखती और पर्दा गिरा देती। 

एकाएक पहाड़ियों से बडे़ बड़े पत्थर बरसने लगे। मुगलिया फौज पत्थरों की बौछार से बचने के लिये भागी आगे रास्ते पर बड़े बड़े पत्थर थे उन्होंने रास्ता बंद कर दिया था। मुगल सेनापति ने पीछे लौटने के लिये कहा लेकिन रास्ता वहाँ भी तब तक पत्थरों से बंद हो चुका था मुगल सेना कैद होकर रह गई थी न आगे जा सकती न पीछे । ऊपर से पत्थर बरस रहे थे और बरसाने वाले दिख नही रहे थे। 

सेना के बीच से आवाजें उठ रही थी कहर कहर आह ओह मर गया। हजारों मुगल सैनिक पत्थरों से कुचल कर मर गये बचे किसी तरह भाग गये। 

राजकुमारी चचंल राणा राजसिंह के समाने उपस्थित हुई राणा राजसिंह ने कहा,‘राजकुमारी मुगल सैनिक भाग चुके हैं अब आपका डोला पिता के पास पहुँचाया जा रहा है’

‘ नहीं महाराणा सिंह नहीं मैं पिता के घर वापस नही जाऊँगी।’ राजकुमारी ने कहा,‘ मुझे तो पिता ने एक मुगल को सौप दिया है अब नही जाऊँगीं। मेरा डोला आपके सामने उतरा है मै अब यहीं रहना चाहूँगी ’कहकर राजकुमारी ने अपना चेहरा झुका लिया। चेहरा रक्तिम हो गया। 

कुछ क्षण राजसिंह चुप रहे फिर बोले ,‘स्वागत है राजकुमारी राजसिंह के महल में आपका स्वागत है ।’’ डोला राजसिंह के महल की ओर चला और जनता में राणा राजसिंह की जय घोष होने लगी।


डा॰ शशि गोयल


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