Monday, 27 January 2025

aai garmi

 मुन्ना ही क्यों पढ़ता



चिड़िया तो बस गाना गाती

मेढ़क बस टर्राता

बादल देख मोर नाचता

कभी न देखा पढ़ता।


सूरज चंदा को ना फुरसत

इधर इधर फिरने से

पर्वत की तो आफत ही बस

आ जाती हिलने से।


इन्हें न कोई कभी डांटता

नहीं बिठाता पढ़ने

कहीं न इनको जाना पड़ता

रोज पहाड़े रटने।


मुन्ने जी यदि जरा खेलते

सब है डांट लगाते

पढ़ो पढ़ो का शब्द हमेशा

रहते उन्हें सुनाते।

















गर्मी आई


सर्दी की मुठ्ठी हुई बंद

ठंडी हवा अब हुइ्र मंद

मफलर टोपी गये उतर

ओवरकोट न आये नजर

सी सी कोई नहीं सिहरता

मुँह से धंुआ नहीं निकलता

चौराहों पर नहीं अलाव

चौपालों के पड़े पड़ाव

संध्या को भी चहल पहल

लोग रहे अब सुबह टहल

होली की है अब तैयारी

डैडी लाकर दो पिचकारी

सब पर छोड़ेगे हम रंग

नाचेंगे सरसों के संग।



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