ब्ूंाद की पायल
हवा ने बदली के गुलगुली मचाई
खिल खिल खिल बदली खिलखिलाई
बदली की दूध भरी मटकी छलछलाई
धरती ने बूंदों की पायल बनाई
छम छम छम छम करती इतराई
टप टप टप टप ढोलक बजाई
फूलों ने रंगभरी चूनर लहराई
बजने लगी डालों की मीठी शहनाई
हवा ने बदली के गुलगुली मचाई
चंादनी फिसल रही
देख षिखर पर हिम का सागर
चांदनी मचल गई,
कूद पड़ी खिल खिल करती
फिर वो फिसल गई,
कभी पेड़ की फुनगी बैठे
कभी दिखाये चाल,
घेरदार लहंगा फैलाकर
नाचे दे दे ताल,
कभी गुदगुदी करे शिला की
देख देख मूुसकाये
कभी वर्फ की गेंद बनाकर
गोल गोल लुढ़काये
वर्फीली बरखा में भीगे
दोनों हाथ फैलाये
थकी चांदनी ओढ़ चुनरिया
पर्वत पर सो जाये ।
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